Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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३८
- प्रज्ञापना सूत्र
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गब्भवक्कंतिय मणुस्साणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम ! गर्भज मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है।
अपज्जत्तगाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक गर्भज मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। ___पजत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहूत्तूणाई॥२३७॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक गर्भज मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का कथन किया गया है।
वाणव्यंतर देवों की स्थिति वाणमंतराणं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता। गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! वाणव्यन्तर देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक पल्योपम की कही गई है।
अपज्जत्तगवाणमंतराणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
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