Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
करते हैं। फिर ३३ हजार, ३१ हजार वर्षों के अन्तर से आहार ग्रहण करते हैं । यहाँ आहार अन्तर यानी एक बार आहार ग्रहण करने के बाद आहार कब तक शरीर में काम आता है । पुनः आहार की जरूरत कब पड़ती है ? 'केवई कालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जई।' वैसे ही देवादि सभी में एक बार के श्वास ग्रहण की प्रक्रिया अन्तर्मुहूर्त्त तक चलती है फिर अंतर्मुहूर्त्त तक श्वास छोड़ते हैं । जैसे - एक सैकण्ड तक श्वासोच्छ्वास लेते गये फिर एक सैकेण्ड तक श्वासोच्छ्वास छोड़ते गये। जैसे हम अन्तर्मुहूर्त्त तक आक्सीजन लेते हैं, वह शरीर में जाकर आवश्यकतानुसार रहती है, फिर अन्तर्मुहूर्त्त तक कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) छोड़ते हैं। छोड़ते ही पुनः श्वास नहीं ले लेते हैं, कुछ रूक कर पुनः लेते छोड़ते हैं । (कुंभक आदि तीन प्रकार की श्वासप्रक्रिया है - पूरक - श्वास लेना, रेचक - श्वास छोड़ना, लंभक यानी श्वास लेना छोड़ना । दोनों बंद शरीर में अन्तर्मुहूर्त्त तक रहना ।) उस पुनः श्वास ग्रहण करने में ३३ पक्ष का विरह पड़ जायेगा । ३३ पक्ष तक अन्दर का श्वास काम करता रहेगा । फिर ३३ पक्ष बाद श्वास लेने की जरूरत पड़ेगी। अन्यथा घुटन होगी। जैसे हमें जरूरत होने पर श्वास नहीं लेने पर घुटन होती है। वैसे ही यहाँ पर भी समझना । ऐसे ही चार जाति के देवों में समझना। सभी में श्वास ग्रहण निस्सरण की प्रक्रिया अन्तर्मुहूर्त्त तक चलती है। फिर आगम वर्णित स्व स्व स्थानों में ३३, ३१ आदि पक्षों का विरह पड़ जाता है। श्वास ग्रहण निस्सरण प्रक्रिया दुःख रूप होने से देवों में ज्यों-ज्यों स्थिति बढ़ती है, त्यों-त्यों विरह बढ़ता है। देवों के तेरह दण्डकों का विरह नियत होता है जबकि औदारिक के दस दण्डकों का विरह अनियत होता है।
सोहम्म देवा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा?
गोयमा ! जहण्णेणं मुहुत्तपुहुत्तस्स, उक्कोसेणं दोन्हं पक्खाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सौधर्म नामक पहले देवलोक के देव कितने काल से श्वासोच्छ्वास लेते हैं और छोड़ते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सौधर्म देव जघन्य मुहूर्त्त पृथक्त्व से और उत्कृष्ट दो पक्ष से श्वासोच्छ्वास लेते हैं और छोड़ते हैं।
ईसाणग देवा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा?
गोयमा! जहण्णेणं साइरेगस्स मुहुत्तपुहुत्तस्स, उक्कोसेणं साइरेगाणं दोण्हं पक्खाणं आमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा ।
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