Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
होता है और कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, किन्तु अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता। इसी प्रकार वृत्त से लेकर आयत संस्थान तक के विषय में कह देना चाहिए।
परिमंडले णं भंते! संठाणे अणंत पएसिए किं संखिज्ज पएसोगाढे, असंखिज्ज पएसोगाढे, अनंत पएसोगाढे ?
गोयमा ! सिय संखिज्ज पएसोगाढे, सिय असंखिज्ज पएसोगाढे, णो अनंत पएसोगाढे । एवं जाव आयए ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अनन्त प्रदेशी परिमण्डल संस्थान क्या संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है ?.
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उत्तर - हे गौतम! अनन्त प्रदेशी परिमण्डल संस्थान कदाचित् संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है और कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, किन्तु अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता। इसी प्रकार वृत्त संस्थान से लेकर आयत संस्थान तक के विषय में समझ लेना चाहिए।
परिमंडले णं भंते! संठाणे संखिज्न पएसिए संखिज्ज पएसोगाढे किं चरिमे, अचरिमे, चरिमाई, अचरिमाइं, चरिमंतपएसा, अचरिमंतपएसा ?
गोयमा ! परिमंडले णं संठाणे संखिज्ज पएसिए संखिज्ज पएसोगाढे णो चरिमे, it अचरिमे, णो चरिमाई, णो अचरिमाई, णो चरिमंतपएसा, णो अचरिमंतपएसा, णियमं अचरिमं, चरिमाणि य चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य । एवं जाव आयए । भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! संख्यात प्रदेशी एवं संख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान क्या १. चरम है, २. अचरम है, ३. बहुवचनान्त अनेक चरम रूप है, ४. अनेक अचरम रूप है, ५. चरमान्त प्रदेश है अथवा ६. अचरमान्त प्रदेश है ?
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उत्तर - हे गौतम! संख्यात प्रदेशी और संख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान न तो १. चरम है, २. न अचरम है, ३. न बहुवचनान्त चरम है, ४. न बहुवचनान्त अचरम है, ५. न चरमान्त प्रदेश है और ६. न ही अचरमान्त प्रदेश है, किन्तु नियम से अचरम, बहुवचनान्त अनेक चरमरूप, चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश है। इसी प्रकार संख्यात प्रदेशी संख्यात प्रदेशावगाढ़ वृत्त संस्थान से लेकर आयत संस्थान तक के विषय में कह देना चाहिए।
परिमंडले णं भंते! संठाणे असंखिज्ज पएसिए संखिज्ज पएसोगाढे किं चरिमे अचरिमे जाव अचरिमंतपएसा ?
गोयमा ! असंखिज्ज एसिए संखिज्ज पएसोगाढे जहा संखिज्ज पएसिए । एवं
जाव आयए ।
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