Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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एक्कारसमं भासापयं
ग्यारहवां भाषा पद उक्खेवो - (उत्क्षेप-उत्थानिका) अवतरणिका - पण्णवणा (प्रज्ञापना) सूत्र के ग्यारहवें पद का नाम भाषा पद है। संसारी जीव जो भाषा पर्याप्ति से पर्याप्त हो चुके हैं। उन जीवों को अपने मन के भाव प्रकट करने के लिए भाषा (वचन) एक मुख्य साधन है। इसके बिना परस्पर विचारों का आदान प्रदान (लेना और देना) नहीं हो सकता है। इसी प्रकार व्यावहारिक और शास्त्रीय अध्ययन (पठनपाठन) तथा ज्ञान उपार्जन करने में कठिनाई होती है। अपने मनोगत भावों को प्रकट करने के लिए भाषा (वचन) बहुत बड़ा साधन है। इससे कर्म-बन्धन और कर्म क्षय दोनों ही हो सकते हैं। जिनेन्द्र भगवान् की आज्ञा की आराधना और विराधना भी हो सकती है। इस कारण से शास्त्रकार ने भाषा पद की रचना की है। इसमें भाषा का लक्षण, भेद, भाषा, वर्गणा, स्त्री, पुरुष, नपुंसक लिङ्ग सम्बन्धी वचन आदि बातों का विस्तार पूर्वक विचार किया गया है तथा आदि द्वार, उत्पत्ति द्वार, संस्थान द्वार आदि अठारह द्वारों से भाषा का सूक्ष्म विवेचन किया गया है। जो आगे मूल पाठ से स्पष्ट हो जायेगा। __. प्रज्ञापना सूत्र के दसवें पद में रत्नप्रभा आदि चौबीस दण्डक के जीवों के चरम और अचरम विभाग का प्रतिपादन किया गया है। इस ग्यारहवें पद में भाषा पर्याप्ति के पर्याप्तक जीवों के सत्य आदि भाषा के भेद बताये गये हैं। इसका प्रथम सूत्र है- .
चार प्रकार की भाषा से णूणं भंते! मण्णामीति ओहारिणी भासा, चिंतेमीति ओहारिणी भासा, अह मण्णामीति ओहारिणी भासा, अह चिंतेमीति ओहारिणी भासा, तह मण्णामीति ओहारिणी भासा, तह चिंतेमीति ओहारिणी भासा?
हंता गोयमा! मण्णामीति ओहारिणी भासा, चिंतेमीति ओहारिणी भासा; अह मण्णामीति ओहारिणी भासा, अह चिंतेमीति ओहारिणी भासा, तह मण्णामीति ओहारिणी भासा, तह चिंतेमीति ओहारिणी भासा॥३७२॥
कठिन शब्दार्थ - Yणं - निश्चय, मण्णामि - मानता हूँ, ओहारिणी - अवधारिणी-अर्थ का बोध कराने वाली, भासा - भाषा, अह - यथा, तह - तथा।
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