Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ग्यारहवाँ भाषा पद - भाषा का स्वरूप
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- औदारिक, वैक्रिय और आहारक इन तीन प्रकार के शरीरों में जीव से संबद्ध जीव प्रदेश होते हैं जिनसे जीव भाषा द्रव्यों को ग्रहण करता है तत्पश्चात् भाषक (वक्ता) बोलता है।
२. भाषा किनसे उत्पन्न होती है ? - भाषा शरीर से उत्पन्न होती है क्योंकि औदारिक, वैक्रिय और आहारक इन तीन शरीरों में से किसी एक शरीर के सामर्थ्य से भाषा द्रव्य निकलते हैं।
३. भाषा का संस्थान कैसा होता है? - भाषा वज्र संस्थिता-वज्र के जैसे संस्थान आकार वाली होती है क्योंकि तथाप्रकार के प्रयत्न से निकले हुए भाषा के द्रव्य सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हो जाते हैं और लोक की आकृति वज्र जैसी है अतः भाषा भी वज्र के आकार वाली बतलाई गयी है।
. ४. भाषा का अन्त कहाँ पर होता है? - भाषा का अन्त लोकान्त में होता है अर्थात् किसी भी स्थान से बोली गयी भाषा लोकान्त तक चली जाती है इसके आगे नहीं जाने का कारण यह है कि लोकान्त से आगे गति क्रिया में सहायक धर्मास्तिकाय का अभाव होने से भाषा द्रव्यों का गमन लोकान्त से आगे नहीं होता है। इस प्रकार सभी तीर्थंकर भगवन्तों ने फरमाया है।
५. भाषा किस योग से उत्पन्न होती है? - भाषा शरीर से उत्पन्न होती है। यहाँ शरीर के ग्रहण से काययोग का ग्रहण किया जाता है क्योंकि काय योग से भाषा योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें भाषा रूप में परिणत करके फिर वचन योग से बाहर निकाला जाता है। अर्थात् काय योग के सामर्थ्य से भाषा उत्पन्न होती है। आचार्य भद्रबाहु स्वामी कहते हैं - "गिण्हइ काइएणं निसरइ तहवाइएण जोगेणं" अर्थात् जीव भाषा वर्गणा को काय योग से ग्रहण करता है और वचन योग से उन्हें बाहर निकालता है।
६. कितने समय में भाषा बोलता है? - जीव दो समयों में भाषा बोलता है क्योंकि वह प्रथम समय में भाषा योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है और दूसरे समय में उन्हें भाषा रूप में परिणत करके छोड़ता है। ..
७. भाषा के कितने प्रकार हैं? - भाषा चार प्रकार की कही गयी है - १. सत्य भाषा २. मृषा भाषा ३. सत्यामृषा भाषा और ४. असत्यामृषा भाषा। .
८. कौनसी भाषा बोलने की अनुज्ञा है ? - सत्य भाषा और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा-दो प्रकार की भाषा बोलने की तीर्थंकर भगवान् ने अनुज्ञा दी है। भगवान् ने साधु को मृषा और सत्यामृषा (मिश्र) भाषा बोलने की अनुज्ञा नहीं दी है क्योंकि ये दोनों भाषाएं अयथार्थ का प्रतिपादन करने वाली होने से मोक्ष के प्रतिकूल है।
भाषा का उद्भव (उत्पत्ति) किस योग से होता है? क्या काययोग से मनयोग से या वचनयोग से? शास्त्रकार ने उत्तर दिया है कि भाषा काययोग से उत्पन्न होती है इसका अर्थ यह है कि वक्ता प्रथम काययोग से भाषा के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके फिर वचनयोग से उन्हें बाहर निकालता है। इस कारण भाषा को 'काय योग प्रभवा' कहना उचित है। जीव दो समयों में भाषा
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