Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ग्यारहवाँ भाषा पद - एकवचन आदि की अपेक्षा भाषा निरूपण
अह भंते! पुढवि त्ति इत्थिपण्णवणी, आउ त्ति पुमपण्णवणी, धण्णे त्ति णपुंसग पण्णवणी आराहणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ?
हंता गोयमा ! पुढवित्ति इत्थिपण्णवणी, आउ त्ति पुमपण्णवणी, धण्णे ति पुंसग पण्णवणी आराहणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ।
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भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! पृथ्वी स्त्री प्रज्ञापनी है, अप् पुरुष प्रज्ञापनी है और धान्य नपुंसक प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा आराधनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ?
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उत्तर - हाँ गौतम ! पृथ्वी स्त्री प्रज्ञापनी है, अप् पुरुष प्रज्ञापनी है और धान्य नपुंसकप्रज्ञापनी है। यह भाषा आराधनी है और यह भाषा मृषा नहीं है।
इच्चेवं भंते! इत्थिवयणं वा पुमवयणं वा णपुंसगवयणं वा वयमाणे पण्णवणी एसा भासा, ण ऐसा भासा मोसा ?
हंता गोयमा ! इत्थवयणं वा पुमवयणं वा णपुंसगवयणं वा वयमाणे पण्णवणी एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ॥ ३८५ ॥
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भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! इसी प्रकार स्त्रीवचन, पुरुषवचन या नपुंसक वचन बोलते हुए जीव की भाषा क्या प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ?
उत्तर - हाँ गौतम! स्त्रीवचन, पुरुष वचन और नपुंसंक वचन बोलते हुए जीव की भाषा क्या प्रज्ञापनी है, क्या यह भाषा मृषा नहीं है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में भाषा के प्रतिपादन के संबंध में जो संदेह (शंकाएं ) थीं उन्हें दूर किया गया है।
स्त्रीलिंग वाचक, पुलिंग वाचक और नपुंसक लिंग वाचक भाषा साधु बोलता है तब वह बोलते हुए की भाषा प्रज्ञापनी है क्योंकि शाब्दिक व्यवहार का अनुसरण करने से इसमें कोई दोष नहीं है। दोष तभी होता है जब वस्तु का जैसा स्वरूप हो उससे विपरीत या अन्य रूप में कथन किया जाये। जिस वस्तु का जैसा स्वरूप है उसे वैसा ही कहा जाए तो उसमें क्या दोष हैं? अर्थात् कोई दोष नहीं है ।
उपरोक्त प्रश्नोत्तरों में व्याकरण की दृष्टि से शब्दों के लिंग की अपेक्षा से लिंग बताया गया है किन्तु उनमें स्त्रीपना ( स्त्री के लिङ्ग आदि) पुरुषपना और नपुंसकपना पाया जाता हो यह बात नहीं है। व्याकरणों में भी संस्कृत व्याकरण और प्राकृत व्याकरण में शब्दों के लिङ्ग भिन्न-भिन्न तरह भी हो जाते हैं और रूप भी भिन्न-भिन्न बन जाते हैं तथा वचन भी व्याकरण की दृष्टि से समझना चाहिएं क्योंकि संस्कृत में तीन लिङ्ग और तीन वचन होते हैं। प्राकृत में लिंग तो तीन होते हैं किन्तु वचन दो ही होते
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