Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 377
________________ ३६४ प्रज्ञापना सूत्र भाषा कहा गया है। यदि ब्रॉडकास्ट (ध्वनिप्रसारित करना) आदि का तीव्र प्रयत्न होवे तो अपनी आवाज मंद प्रयत्न वाली समझना। यदि अपनी भाषा का भी तीव्र प्रयत्न इष्ट होवे तो गरगर शब्द या मृत्यु आदि के शोक के समय के धीमे-धीमे शब्द मंद प्रयत्न वाले समझना। जैसा भी आगमकारों को इष्ट है वैसा तीव्र मंद प्रयत्न समझना चाहिये। तीव्र प्रयल से बोली गई भाषा एवं उससे वासित पुद्गल चार समय में पूरे लोक में व्याप्त हो जाते हैं किन्तु इन पुद्गलों से अचित्त महास्कन्ध बनना ध्यान में नहीं आता है। लोकान्त तक गये हुए सभी पुद्गलों का वापिस आना आवश्यक नहीं है। कई पुद्गल वहीं नष्ट हो जाते हैं। तीव्र प्रयत्न हो तो मेघ गर्जना आदि की शब्द वर्गणा से भी लोक व्याप्ति हो सकती है। जो तीव्र प्रयत्न से छोड़े जाते हैं वे पुद्गल तो भेदित हो जाते हैं उनमें पांच प्रकार का भेदन हो सकता है। भेदित पुद्गल तो प्रायः लोकव्याप्त हो जाते हैं कुछ पुद्गल जो अभेदित रह जाते हैं वे संख्यात असंख्यात योजन जाकर नष्ट भी हो सकते हैं। मंद प्रयत्न में तो प्रायः सभी पुद्गल अभेदित ही निकलते हैं कुछ का भेद भी हो सकता है। एक समय में बोली हुई भाषा के पुद्गल संख्यात योजन जाकर नष्ट हो जाते हैं। क्योंकि वे मंदतम प्रयत्न से बोले जाने के कारण अभेदित ही निकलते हैं। अतः नष्ट हो जाते हैं। भाषा के पुद्गलों की लोक व्याप्ति केवली समुद्घात की तरह होती है तथा भाषा वर्गणा और शब्द वर्गणा दोनों से लोक व्याप्ति होती है। दण्ड अवस्था में भाषापना (भाषत्व) कायम रहता है। अन्य समयों में शब्द वर्गणा के पुद्गल भी शामिल हो जाते हैं। भाषा के पुद्गल तो रह सकते हैं परन्तु उनका भाषापना नष्ट हो जाता है। भाषा द्रव्यों के भेद . तेसि णं भंते! दव्वाणं कइविहे भेए पण्णत्ते? गोयमा! पंचविहे भेए पण्णत्ते। तंजहा - खंडाभेए, पयराभेए, चुण्णियाभेए, अणुतडियाथेए, उक्करियाभेए। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन द्रव्यों के भेद कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! द्रव्यों के भेद पांच प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - १. खण्ड भेद २. प्रतर भेद ३. चूर्णिका भेद ४. अनुतटिका भेद और ५. उत्करिका भेद। से किं तं खंडाभेए? खंडाभेए जण्णं अयखंडाण वा तउखंडाण वा तंबखंडाण वा सीसगखंडाण वा रययखंडाण वा जायरूवखंडाण वा खंडएणं भेए भवइ, से तं खंडाभेए.१। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! खंड भेद किस प्रकार का होता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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