Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बारहवाँ शरीर पद - शरीरों के बद्ध - मुक्त भेद
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इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों तक समझ लेना चाहिये।
पुढविकाइयाणं भंते! कइ सरीरया पण्णत्ता ?
गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता । तंजहां- ओरालिए, तेयए, कम्मए। एवं
वाउकाइयवज्जं जाव चउरिंदियाणं ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों के तीन शरीर कहे गये हैं। १. औदारिक २. तैजस और ३. कार्मण ।
उत्तर
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३७७
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इसी प्रकार वायुकायिकों को छोड़ कर यावत् चउरिन्द्रिय जीवों तक समझ लेना चाहिये । वाडकाइयाणं भंते! कइ सरीरया पण्णत्ता ?
गोयमा! चत्तारि सरीरया पण्णत्ता । तंजहा - ओरालिए, वेडव्विए, तेयए, कम्मए । एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वि ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वायुकायिक जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वायुकायिक जीवों के चार शरीर कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं - १. औदारिक २. वैक्रिय ३. तैजस और ४. कार्मण ।
इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों के विषय में भी समझ लेना चाहिये ।
मस्साणं भंते! कइ सरीरया पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंच सरीरया पण्णत्ता । तंजहा - ओरालिए, वेडव्विए, आहारए, तेयए, कम्मए । वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा णारगाणं ॥ ४०५-६ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
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वे इस प्रकार हैं
उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों के पांच शरीर कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण ।
शरीरों के बद्ध-मुक्त भेद
वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों में नैरयिक जीवों की तरह समझ लेना चाहिये । अर्थात् वैक्रिय, तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नैरयिक जीवों से लेकर वैमानिक तक किसमें कितने शरीर पाये जाते हैं इसका कथन किया गया है।
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केवइया णं भंते! ओरालिय सरीरया पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जे ते
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