Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 395
________________ ३८२ प्रज्ञापना सूत्र विवेचन - बद्ध तैजस शरीर अनन्त हैं। क्योंकि साधारण शरीरी निगोदिया जीवों के तैजस शरीर अलग-अलग होते हैं, औदारिक की तरह एक नहीं। उसकी अनन्तता का काल से परिमाण (पूर्ववत्) अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के समयों के बराबर है। क्षेत्र से अनन्त लोक परिमाण है। अर्थात्-अनन्त लोकाकाशों में जितने प्रदेश हों, उतने ही बद्ध तैजस शरीर हैं। द्रव्य की अपेक्षा से बद्ध तैजस शरीर सिद्धों से अनन्त गुणा हैं, क्योंकि तैजस शरीर समस्त संसारी जीवों के होते हैं और संसारी जीव सिद्धों से अनन्त गुणा हैं। इसलिए तैजस शरीर भी सिद्धों से अनन्त गुणा हैं । किन्तु सम्पूर्ण जीवराशि की दृष्टि से विचार किया जाए तो वे समस्त जीवों से अनन्तवें भाग कम हैं, क्योंकि सिद्धों के तैजस शरीर नहीं होता और सिद्ध सर्व जीवराशि से अनन्तवें भाग हैं, अतः उन्हें कम कर देने से तैजस शरीर सर्वजीवों के अनन्तवें भाग न्यून हो जाते हैं । मुक्त तैजस शरीर भी अनन्त हैं। काल और क्षेत्र की अपेक्षा उसकी अनन्तता पूर्ववत् समझ लेनी चाहिए। द्रव्य की अपेक्षा से मुक्त तैजस शरीर समस्त जीवों से अनन्त गुणा हैं, क्योंकि प्रत्येक जीव का एक तैजस शरीर होता है। जीवों के द्वारा जब उनका परित्याग कर दिया जाता है तो वे पूर्वोक्त प्रकार से अनन्त भेदों वाले हो जाते हैं और उनका असंख्यात काल पर्यन्त उस पर्याय में अवस्थान रहता है, इतने समय में जीवों द्वारा परित्यक्त (मुक्त) अन्य तैजस शरीर प्रतिजीव असंख्यात पाए जाते हैं और वे सभी पूर्वोक्त प्रकार से अनन्त भेदों वाले हो जाते हैं । अतः उन सबकी संख्या समस्त जीवों से अनन्त गुणी कही गई हैं। शंका - क्यों समस्त मुक्त तैजस शरीरों की संख्या जीव वर्ग प्रमाण होती है ? समाधान - वे जीव वर्ग के अनन्तवें भाग परिमाण होते हैं । वे समस्त मुक्त तैजस शरीर जीव वर्ग परिमाण तो तब हो पाते, जबकि एक-एक जीव के तैजस शरीर सर्व जीव राशि परिमाण होते या उससे कुछ अधिक होते और उनके साथ सिद्ध जीवों के अनन्त भाग की पूर्ति होती । उसी राशि का उसी राशि से गुणा करने पर वर्ग होता है। जैसे ४ को ४ से गुणा करने पर (४ x ४ = १६) सोलह संख्या वाला वर्ग होता है। किन्तु एक-एक जीव के मुक्त तैजस शरीर सर्वजीवराशि-परिमाण या उससे कुछ अधिक नहीं हो सकते, अपितु उससे बहुत कम ही होते हैं और वे भी असंख्यातकाल तक ही रहते हैं। उतने काल में जो अन्य मुक्त तैजस शरीर होते हैं, वे भी थोड़े ही होते हैं, क्योंकि काल थोड़ा है। इस कारण मुक्त तैजस शरीर जीव वर्ग परिमाण नहीं होते हैं किन्तु जीव वर्ग के अनन्तवें भाग मात्र ही होते हैं। नैरयिकों के बद्ध-मुक्त शरीर रइयाणं भंते! केवइया ओरालिय सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जे ते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org

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