Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 408
________________ बारहवाँ शरीर पद - मनुष्यों के बद्ध-मुक्त शरीर ३९५ मणुस्साणं भंते! केवइया वेउब्विया सरीरया पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य, तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं संखिज्जा, समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा संखिजेणं कालेणं अवहीरंति, णो चेव णं अवहीरिया सिया। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालिया ओहिया। आहारग सरीरा जहा ओहिया। तेया कम्मगा जहा एएसिं चेव ओरालिया। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों के वैक्रिय शरीर कितने कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों के वैक्रिय शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - बद्ध और मुक्त। उनमें जो बद्ध वैक्रिय शरीर हैं वे असंख्यात हैं। यदि वे समय समय में अपहृत किये जाय तो संख्यात काल से अपहृत होते हैं किन्तु इस प्रकार अपहृत नहीं किये गये हैं। उनमें जो मुक्त वैक्रिय शरीर हैं वे औधिक (सामान्य) औदारिक शरीरों के समान समझना चाहिये। मनुष्यों के बद्ध मुक्त आहारक शरीरों का कथन औधिक आहारक शरीरों के समान तथा तैजस कार्मण शरीरों का कथन इन्हीं के औदारिक शरीरों की तरह कर देना चाहिये। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मनुष्यों के बद्ध और मुक्त शरीरों की प्ररूपणा की गयी है। मनुष्यों के बद्ध औदारिक शरीर स्यात् (किसी अपेक्षा) संख्यात स्यात् असंख्यात हैं। जब सम्मूछिम मनुष्य का विरह पड़ता है तब गर्भज मनुष्य संख्यात होते हैं। जब सम्पूछिम का विरह नहीं होता तब गर्भज और सम्मूछिम मनुष्य दोनों को मिलाकर कभी संख्यात कभी असंख्यात होते हैं। जघन्य संख्यात की संख्या इस प्रकार है - संख्यात कोटि-कोटि, तीन यमल पद ® के ऊपर और चार यमल पद के नीचे, पांचवें वर्गमूलं से गुणा किया हुआ छठा वर्ग मूल 0 अथवा छ्यानवें छेदनक दायी २ (छण्णउई छेयणगदाई)। मनुष्य उत्कृष्ट असंख्यात कहे सो असंख्यात इस तरह समझना चाहिए। काल की अपेक्षा प्रति समय आठ अंक स्थानों का एक यमल पद होता है। मनुष्यों की संख्या के २९ अंक हैं। अतः तीन यमल पद के २४ अंक हुए और शेष ५ अंक रहते हैं। अतः मनुष्यों की संख्या तीन यमल पद के ऊपर और चार यमल पद के नीचे कही है। दो का वर्ग ४, ४ का वर्ग १६, १६ का वर्ग २५६, २५६ का वर्ग ६५५३६, ६५५३६ का वर्ग ४२९४९६७२९६ यह पांचवां वर्ग हुआ। ४२९४९६७२९६ का वर्ग १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ यह छठा वर्ग हुआ। इस छठे वर्ग की संख्या को पांचवें वर्ग की संख्या से गुणा करने पर २९ अंकों की संख्या ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ आती है। जघन्य पद में मनुष्य की संख्या इतनी जानना चाहिए। छेदनक का अर्थ विभाग होता है। जिस संख्या को दो से विभाजित करने पर छियानवें (९६) बार दो का भाग जाता है उस संख्या को 'छियानवे छेदनक दायी' कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 406 407 408 409 410 411 412 413 414