Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 381
________________ ३६८ प्रज्ञापना सूत्र एवं मोसाभासाए वि, सच्चामोसाभासाए वि । असच्चामोसाभासाए वि एवं चेव, णवरं असच्चामोसाभासाए विगलिंदिया वि पुच्छिज्जंति इमेणं अभिलावेणं भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जीव जिन द्रव्यों को सत्य भाषा रूप में ग्रहण करता है, क्या वह स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है ? उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार औधिक (सामान्य) दण्डक कहा है उसी प्रकार यह भी जान लेना चाहिए किन्तु विकलेन्द्रियों के विषय में पृच्छा नहीं करनी चाहिये। इसी प्रकार मृषाभाषा, सत्य मृषा भाषा और असत्यामृषा भाषा के विषय में भी समझ लेना चाहिए परन्तु असत्यामृषा भाषा से अभिलाप के द्वारा विकलेन्द्रियों के विषय में पूछना चाहिए । विगलिंदिए णं भंते! जाई दव्वाइं असच्चामोसाभासत्ताए गिण्हड़ ताइं किं ठियाई गिves, अठियाइं गिण्हइ ? गोयमा ! जहा ओहियदंडओ, एवं एए एगत्तपुहुत्तेणं दस दंडगा भाणियव्वा ॥ ४०१ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! विकलेन्द्रिय जीव जिन द्रव्यों को असत्यामृषा भाषा रूप में ग्रहण करता है तो क्या स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है । उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार औधिक (सामान्य) दण्डक कहा गया है उसी प्रकार यहाँ समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार एक वचन और बहुवचन के दस दण्डक कह देना चाहिये । जीवे णं भंते! जाई दव्वाइं सच्चभासत्ताए गिण्हइ, ताई किं सच्चभासत्ताए णिसिरड़, मोसभासत्ताए णिसिरइ, सच्चामोसभासत्ताए णिसिरइ, असच्चामोसभासत्ताए णिसिरइ ? गोयमा ! सच्चभासत्ताए णिसिरइ, णो मोसभासत्ताए णिसिरइ, णो सच्चामोसभासत्ताए णिसिरइ, णो असच्चामोसभासत्ताए णिसिर । एवं एगिंदिय विगलिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिए। एवं पुहुत्तेण वि । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को सत्य भाषा रूप में ग्रहण करता है क्या उनको सत्य भाषा के रूप में निकालता है, मृषा भाषा के रूप में निकालता है, सत्यामृषा भाषा के रूप में निकालता है या असत्यामृषा भाषा के रूप में निकालता है ? उत्तर - हे गौतम! जीव जिन द्रव्यों को सत्य भाषा के रूप में ग्रहण करता है उनको सत्य भाषा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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