Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ग्यारहवाँ भाषा पद - भाषा द्रव्यों के विभिन्न रूप
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जाई गंधओ सुब्भिगंधाइं गिण्हइ, ताई किं एगगुण सुब्भिगंधाई गिण्हइ जाव अणंतगुण सुब्भिगंधाई गिण्हइ?
गोयमा! एगगुण सुब्भिगंधाइं वि गिण्हइ जाव अणंतगुण सुब्भिगंधाई वि गिण्हइ। एवं दुब्भिगंधाइं वि गिण्हइ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव गंध से जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या वह एक गुण सुगन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् अनंत गुण सुगन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है?
उत्तर - हे गौतम! जीव एक गुण सुगन्ध वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है यावत् अनन्त गुण सुगन्ध वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। इसी तरह दुर्गन्ध वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है।
जाई भावओ रस मंताई गिण्हइ ताई किं एग रसाइं गिण्हइ जाव किं पंच रसाइं गिण्हइ?
गोयमा! गहणदव्वाइं पडुच्च एग रसाइं वि गिण्हइ जाव पंच रसाइं वि गिण्हइ, सव्वग्गहणं पडुच्च णियमा पंच रसाइं गिण्हइ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव भाव से रस वाले जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है तो क्या वह एक रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् पांच रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
उत्तर.- हे गौतम! जीव ग्रहण द्रव्यों की अपेक्षा से वह एक रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् पांच रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है किन्तु सर्व ग्रहण की अपेक्षा से नियम से पांच रस वाले' द्रव्यों को ग्रहण करता है।
जाइं रसओ तित्त रसाइं गिण्हइ ताई किं एगगुणतित्तरसाइं गिण्हइ जाव अणंत गुण तित्तरसाइं गिण्हइ? - गोयमा! एगगुणतित्तरसाइं वि गिण्हइ जाव अणंत गुण त्तित्तरसाइं वि गिण्हइ, एवं जाव महुर रसाइं वि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव रस से तीखे रस वाले जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या वह एक गुण तीखे रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् अनन्त गुण तीखे रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है? ...... उत्तर - हे गौतम! वह एक गुण तीखे रस वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है यावत् अनन्त गुण तीखे रस वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार यावत् मीठे रस वाले द्रव्यों के विषय में भी कह देना चाहिए।
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