Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 372
________________ ग्यारहवाँ भाषा पद - भाषा द्रव्यों के विभिन्न रूप ३५९ जाई भंते! आई वि गिण्हइ, मझे वि गिण्हइ, पज्जवसाणे वि गिण्हइ ताई किं सविसए गिण्हइ, अविसए गिण्हइ? गोयमा! सविसए गिण्हइ, णो अविसए गिण्हइ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को आदि मध्य और अन्त में ग्रहण करता है तो क्या वह स्व विषयक द्रव्यों को ग्रहण करता है या अविषयक द्रव्यों को ग्रहण करता है। उत्तर - हे गौतम! जीव स्व विषयक द्रव्यों को ग्रहण करता है किन्तु अविषयक द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता है। जाइं भंते! सविसए गिण्हइ ताई किं आणुपुट्विं गिण्हइ, अणाणुपुव्विं गिण्हइ? गोयमा! आणुपुव्विं गिण्हइ, णो अणाणुपुब्बिं गिण्हइ। .. भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव जिन स्व विषयक द्रव्यों को ग्रहण करता है वह आनुपूर्वी से ग्रहण करता है या अनानुपूर्वी से ग्रहण करता है ? ____उत्तर - हे गौतम! जीव उन स्वविषयक द्रव्यों को आनुपूर्वी से ग्रहण करता है किन्तु अनानुपूर्वी से ग्रहण नहीं करता है। जाई भंते! आणुपुव्विं गिण्हइ ताई किं तिदिसिं गिण्हइ जाव छ दिसिं गिण्हइ? गोयमा! णियमा छ दिसिं गिण्हइ। "पद्धोगाढअणंतर अणू य तह बायरे य उड्नमहे। आइविसयाणुपुट्विं णियमा तह छ दिसिं चेव॥३९६॥" भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जीव जिन द्रव्यों को आनुपूर्वी से ग्रहण करता है क्या उन्हें तीन दिशाओं से ग्रहण करता है यावत् छह दिशाओं से ग्रहण करता है? - उत्तर - हे गौतम! आनुपूर्वी से ग्रहण किये हुए द्रव्यों को नियम से छह दिशाओं से ग्रहण करता है। गाथार्थ - स्पृष्ट, अवगाढ, अनन्तरावगाढ़, अणु तथा बादर, ऊर्ध्व अधो आदि स्व विषयक आनुपूर्वी तथा नियम से छह दिशाओं से भाषा योग्य द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है। विवेचन - जो पुद्गल आत्मा से स्पृष्ट (स्पर्श किये हुए) होते हैं उन्हें ग्रहण करते हैं, अस्पृष्ट को ग्रहण नहीं करते। स्पृष्ट पुद्गलों में भी जो आत्म प्रदेशों के साथ एक क्षेत्र में रहे हुए हैं उन अवगाढ़ पुद्गलों को ग्रहण किया जाता है, अनवगाढ़ पुद्गलों को ग्रहण नहीं किया जाता। अवगाढ़ पुद्गलों में भी अनंतरावगाढ़, अव्यवहित (आंतरा रहित) पुद्गलों को ग्रहण किया जाता है किन्तु . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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