Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 366
________________ ग्यारहवाँ भाषा पद - भाषा द्रव्यों के विभिन्न रूप . . ३५३ जाई कालओ गिण्हइ ताइं किं एगसमयठिड्याइं गिण्हइ, दुसमयठिइयाइं गिण्हइ जाव असंखिज समयठिइयाइं गिण्हइ? गोयमा! एगसमयठिइयाइं वि गिण्हइ, दुसमयठिइयाइं वि गिण्हइ जाव असंखिज समयठिड्याइं वि गिण्हड। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जीव जिन स्थित द्रव्यों को काल से ग्रहण करता है तो क्या वह एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? उत्तर - हे गौतम! जीव एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। - विवेचन - काल से जीव एक समय की स्थिति वाले यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है क्योंकि पुद्गलों की स्थिति असंख्यात काल तक की संभव है। जाइं भावओ गिण्हइ ताइं किं वण्णमंताई गिण्हइ, गंधमंताई गिण्हइ, रसमंताई गिण्हइ, फासमंताई गिण्हइ? गोयमा! वण्णमंताई वि गिण्हइ जाव फासमंताई वि गिण्हइ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव जिन स्थित द्रव्यों को भाव से ग्रहण करता है क्या वह वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, गंध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है या स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? उत्तर- हे गौतम! जीव वर्ण वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, गन्ध वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, रस वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है और स्पर्श वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। जाई भावओ वण्णमंताई गिण्हइ ताई किं एगवण्णाइं गिण्हइ जाव पंचवण्णाई गिण्हइ? __गोयमा! गहणदव्वाइं पडुच्च एगवण्णाई वि गिण्हइ जाव पंचवण्णाइं वि गिण्हइ, सव्वग्गहणं पडुच्च णियमा पंचवण्णाई गिण्हइ, तंजहा - कालाई णीलाइं लोहियाई हालिहाई सुक्किल्लाइं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव भाव से जिन वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है तो क्या वह एक वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् पांच वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414