Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 355
________________ ३४२ प्रज्ञापना सूत्र गाथार्थ - जनपद १ सम्मत २ स्थापना ३ नाम ४ रूप ५ प्रतीत्य ६। . . व्यवहार ७ भाव ८ योग ९ और दसवां उपमा सत्य। विवेचन - सत्य भाषा के दस भेदजणवय सम्मत ठवणा, नामे रुवे पडुच्च सच्चे य। ववहार भाव जोगे, दसमे ओवम्म सच्चे य॥ १ जनपद सत्य २. सम्मत सत्य ३. स्थापना सत्य ४. नाम सत्य ५. रूप सत्य ६. प्रतीत्य सत्य ७. व्यवहार सत्य ८. भाव सत्य ९. योग सत्य १०. उपमा सत्य। . १. जनपद सत्य - देश विशेष की अपेक्षा इष्ट अर्थ का ज्ञान कराने वाली, व्यवहार की हेतु रूप जो भाषा है वह जनपद सत्य है। जैसे कोंकण देश में पानी को 'पिच्च' कहते हैं। २. सम्मत सत्य - सभी लोगों को सम्मत होने से जो सत्य रूप प्रसिद्ध है वह सम्मत सत्य है। जैसे पंकज शब्द का अर्थ कीचड़ से उत्पन्न होने वाला होता है। कीचड़ से कमल, कुनुद, शेवाल, मेंढ़क आदि उत्पन्न होते हैं किन्तु कमल को ही पंकज कहते हैं, अन्य को नहीं। .. ३. स्थापना सत्य - सदृश अथवा विसदृश आकार वाली वस्तु में वस्तु विशेष की स्थापना करके उसे उस नाम से कहनो स्थापना सत्य है। जैसे शतरञ्ज के मोहरों को हाथी, घोडा, ऊँट आदि कहना। विशेष प्रकार से अङ्क लिखकर उसमें संख्या विशेष का आरोप करना भी स्थापना सत्य है। जैसे एक अङ्क के आगे दो शून्य रखने पर सौ की संख्या मानना, तीन शून्य रखने पर हजार की संख्या मानना। स्थापना सत्य के सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना के भेद से दो भेद हैं। जिसकी स्थापना करनी है उसकी आकृति बना कर उपमें उसकी स्थापना करना सद्भाव स्थापना है जैसे चार भुजा की मूर्ति में चार भुजा की स्थापना कर उसे चार भुजा कहना। जैसे घोड़े के चार पैर, दो कान, दो आँख आदि मिट्टी का आकृति बनाकर उसे घोड़ा कहना। आकार आदि की अपेक्षा न कर जिस किसी वस्तु में वस्तु विशेष की स्थापना करना असद्भाव स्थापना है। जैसे पांच पचेटा (कंकर) रख कर आखा चढ़ा कर उसे शीतलामाता कहना। अथवा जैसे बच्चे द्वारा लकड़ी के टूकड़े को दोनों पैरों के बीच में रखकर खींचते चलना और कहना कि मेरा घोड़ा आया किन्तु उस लकड़ी में किसी प्रकार के घोड़े का आकार नहीं है तथा जैसे आज किसी मनुष्य ने राम, कृष्ण, आदिनाथ भगवान् तथा महावीर स्वामी को किसी ने देखा नहीं है किन्तु उनकी मूर्ति बनाना यह सद्भाव स्थापना है। नाम और स्थापना वन्दनीय और पूजनीय नहीं होते हैं। ४. नाम सत्य - गुण की अपेक्षा न कर किसी का नाम विशेष रख देना नाम सत्य है। जैसे कुल की वृद्धि न करने वाले व्यक्ति का नाम 'कुल वर्धन' रखना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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