Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
हैं। उसके लिए कहना कि कंकर ही कंकर उठा लाया। यह भाषा कंकर की अपेक्षा सत्य और धान की अपेक्षा असत्य होने से मिश्रित है।
६. जीवाजीव मिश्रिता (जीवाजीव मिस्सिया) - उक्त कंकर मिश्रित धान्य राशि के लिये यह कहना कि आधोआध उठा लाया जीवाजीव मिश्रिता भाषा है क्योंकि धान और कंकर का परिमाण न्यूनाधिक संभव है।
७. अनन्त मिश्रित (अणंत मिस्सिया) - पत्ते अथवा अन्य प्रत्येक वनस्पति काय से मिश्रित मूले आदि के लिए यह अनन्तकाय है' कहना अनन्त मिश्रिता भाषा हैं।
८. प्रत्येक मिश्रिता (परित्त मिस्सिया) - प्रत्येक वनस्पति के समूह को अनन्तकाय के साथ मिला हुआ देख कर 'यह प्रत्येक वनस्पति है' कहना प्रत्येक मिश्रिता भाषा है।
९. अद्धा मिश्रिता (अद्धा मिस्सिया) - अद्धा का अर्थ काल है। यहाँ दिन रात समझना। जैसे दिन रहते किसी को कहना-उठ, रात्रि हो गई अथवा रात्रि रहते किसी को कहना-चलो, सूर्योदय हो गया। यह अद्धा मिश्रिता भाषा है।
१०. अद्धद्धा मिश्रिता (अद्धद्धा मिस्सिया)- दिन या रात्रि का एक देश अद्धद्धा कहा जाता है। जैसे पहले पौरुषी (पोरसी) के समय ही किसी को, 'उठो चलो दोपहर हो गया' कहना अद्धद्धा मिश्रिता भाषा है।
असच्चामोसा णं भंते! भासा अपजत्तिया कइविहा पण्णत्ता? गोयमा! दुवालसविहा पण्णत्ता। तंजहा - आमंतणी १, आणमणी २, जायणी ३, तह पुच्छणी य ४, पण्णवणी ५। पच्चक्खाणी भासा ६, भासा इच्छाणुलोमा ७ य॥ अणभिग्गहिया भासा ८, भासा य अभिग्गहंमि बोद्धव्वा ९। संसयकरणी भासा १०, वोयड ११, अव्वोयडा चेव १२॥३९१॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक असत्यामृषा भाषा कितनी प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक असत्यामृषा भाषा बारह प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार हैं - १. आमंत्रणी २. आज्ञापनी ३. याचनी ४. पृच्छनी ५. प्रज्ञापनी ६. प्रत्याख्यानी ७. इच्छालोमा ८. अनभिगृहीता ९. अभिगृहीता १०. संशयकरणी ११. व्याकृता और १२. अव्याकृता भाषा। विवेचन - व्यवहार भाषा के बारह भेद -
आमंतणी आणमणी, जायणी तह पुच्छणी य पण्णवणी। पच्चक्खाणी भासा, भासा इच्छाणुलोमा य॥१॥
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