Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 357
________________ ३४४ प्रज्ञापना सूत्र असत् को असत् की उपमा- -जैसे घोड़े का सींग गधे के सींग सरीखा है और गधे का सींग घोड़े के सींग जैसा है। मोसा णं भंते! भासा पज्जत्तिया कविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता । तंजहा- कोहणिस्सिया १, माणणिस्सिया २, मायाणिस्सिया ३, लोहणिस्सिया ४, पेज्जणिस्सिया ५, दोसणिस्सिया ६, हासणिस्सिया ७, भयणिस्सिया ८, अक्खाइयाणिस्सिया ९, उवघाइयणिस्सिया १० । 'कोहे माणे माया लोभे पेज्जे तहेव दोसे य । हास भए अक्खाइयउवघाइयणिस्सिया दसमा ॥ ३८९ ॥ ' - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक मृषा भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक मृषा भाषा दस प्रकार की कही गई है वह इस प्रकार है १. क्रोध निःसृत २. मान निःसृत ३. माया निःसृत ४. लोभ निःसृत ५. प्रेम (राग) निःसृत ६ द्वेष निःसृत ७. हास्य निःसृत ८. भय निःसृत ९. आख्यायिका निःसृत और १०. उपघात निःसृत । गाथार्थ - क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ४ राग ५ द्वेष ६ । हास्य भय आख्यायिका उपघात निःसृत दसवां ॥ विवेचन असत्य भाषा के दस भेद - .....................◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ कोहे माणे माया लोभे, पिज्जे तहेव दोसे य । हास भय अक्खाइय, उवघाइय णिस्सिया दसमा ॥ १. क्रोध निःसृत २. मान निःसृत ३. माया निःसृत ४. लोभ निःसृत ५. प्रेम (राग) निःसृत ६. द्वेष निःसृत ७. हास्य निःसृत ८. भय निःसृत ९. आख्यायिका निःसृत १०. उपघात निःसृत । क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम (राग), द्वेष, हास्य और भय के वश बोली हुई भाषा सत्य या असत्य होने पर भी असत्य होती है। कथाओं में असंभव बातों का वर्णन आख्यायिका निःसृत असत्य है। जीवों की हिंसा हो ऐसी भाषा बोलना, 'तूं चोर है' इस प्रकार झूठा दोष देना उपघात निःसृत असत्य है । Jain Education International अपर्याप्तक भाषा के भेद अपज्जत्तिया णं भंते! कइविहा भासा पण्णत्ता ? गोमा ! दुविहा पण्णत्ता । तंजहा सच्चामोसा य असच्चामोसा य । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन । अपर्याप्तक भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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