Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ग्यारहवाँ भाषा पद - चतुर्विध भाषाजात
गोयमा ! णेरड्या दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा ते णं अभासगा, तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा ते णं भासगां, से एएणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ- 'णेरड्या भासगा वि, अभासगा वि । ' एवं एगिंदियवज्जाणं णिरंतरं भाणियव्वं ॥ ३९३ ॥
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भावार्थ- - प्रश्न हे भगवन्! आप किस कारण से ऐसा कहते हैं कि नैरयिक भाषक भी होते हैं। और अभाषक भी होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरंयिक दो प्रकार के कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं - १. पर्याप्तक और २. अपर्याप्तक। उनमें से जो अपर्याप्तक हैं वे अभाषक हैं और जो पर्याप्तक हैं वे भाषक हैं। हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि नैरयिक भाषक भी हैं और अभाषक भी हैं। इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर शेष सभी जीवों के लिए निरन्तर कहना चाहिये।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में सभी संसारी जीवों की भाषकता और अभाषकता का निरूपण किया गया है। एकेन्द्रिय को छोड़ कर शेष सभी जीव भाषक भी होते हैं और अभाषक भी होते हैं। एकेन्द्रिय अभाषक ही होते हैं क्योंकि उनके रसनेन्द्रिय (जिह्वा) नहीं होती है।
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३४९.
चतुर्विध भाषाजात
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कणं भंते! भासज्जाया पण्णत्ता ?
गोयमा ! चत्तारि भासज्जाया पण्णत्ता । तंजहा - सच्चमेगं भासज्जायं, बिइयं मोसं, तइयं सच्चामोसं, चउत्थं असच्चामोसं ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! भाषा कितनी प्रकार की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! भाषा चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - १. पहली सत्य भाषा १२. दूसरी मृषा भाषा ३. तीसरी सत्या मृषा और ४. चौथी असत्यामृषा ।
जीवा णं भंते! किं सच्चं भासं भासंति, मोसं भासं भासंति, सच्चामोसं भासं भासंति, असच्चामोसं भासं भासंति ?
गोयमा ! जीवा सच्चं वि भासं भासंति, मोसं वि भासं भासंति, सच्चामोसं वि भासं भासंति, असच्चामोसं वि भासं भासति ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या जीव सत्य भाषा बोलते हैं, मृषा भाषा बोलते हैं, सत्या मृषा भाषा बोलतें हैं या असत्यामृषा भाषा बोलते हैं ?
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