Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ग्यारहवाँ भाषा पद - पर्याप्तक भाषा के भेद
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५. रूप सत्य - रूप-वेश देख कर वेश के गुणों से रहित व्यक्ति को भी उस रूप से कहना रूप सत्य है। जैसे कपट से साधु का वेश पहनने वाले व्यक्ति को साधु कहना ।
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६. प्रतीत्य सत्य - दूसरी वस्तु की अपेक्षा जो सत्य है वह प्रतीत सत्य है । जैसे कनिष्ठा (चिट्टी) अंगुली की अपेक्षा अनामिका अंगुली बड़ी है और मध्यांगुली की अपेक्षा अनामिका अंगुली छोटी है। जैसे एक ही व्यक्ति अपने पिता की अपेक्षा पुत्र है और पुत्र की अपेक्षा पिता है ।
७. व्यवहार सत्य - व्यवहार यानी लोक विवक्षा की अपेक्षा जो सत्य है वह व्यवहार सत्य है । जैसे पहाड़ जलता है घड़ा झरता है आदि । सच तो यह है कि पहाड़ नहीं जलता है पर पहाड़ में रहे हुए तृण काष्ठादि जलते हैं । इसी तरह घड़ा नहीं झरता है किन्तु घड़े में रहा हुआ पानी झरता है। किन्तु लोक व्यवहार से 'पहाड़ जलता है', 'घड़ा झरता है' जो कहा जाता है वह व्यवहार सत्य है।
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८. भाव सत्य - वर्णादि भाव की अपेक्षा जो सत्य है यानी जिसमें जिस वर्ण विशेष की अधिकता है उसे उस वर्ण विशेष वाला कहना भाव सत्य है जैसे कोयल काली है, तोता हरा है, बगुला सफेद है। यद्यपि इनमें निश्चय से पांचों ही वर्ण पाते हैं किन्तु काले, हरे और सफेद वर्ण की अधिकता की अपेक्षा इन्हें काला, हरा और सफेद कहा जाता है।
९. योग सत्य - योग का अर्थ सम्बन्ध है । सम्बन्ध की अपेक्षा जो सत्य है वह योग सत्य है । जैसे छत्र के सम्बन्ध से पुरुष को छत्री (छत्र वाला) और दंड के सम्बन्ध से दंडी (वाला) कहना !
१०. उपमा सत्य - उपमा की अपेक्षा सत्य उपमा सत्य है । उपमा चार तरह की है - १. सत् को सत् की उपमा जैसे महापद्म तीर्थंकर ( आगामी उत्सर्पिणी का प्रथम तीर्थंकर) भगवान् महावीर जैसे होंगे। २. सत् को असत् की उपमा जैसे नारकी देवता का पल्योपम सागरोपम का आयुष्य सत् है किन्तु पल्य और सागर की उपमा असत् है ।
असत् को सत् की उपमा जैसे पत्र और वृक्ष की बातचीत
पान खिरन्तो इम कहे, सुन तरुवर वनराय । अबके बिछुड़े कब मिलें, दूर पड़ेंगे जाय ॥ तब तरुवर उत्तर दियो, सुनो पत्र इक बात । इस घर याही रीत है, इक आवत इक जात ॥ पान खिरन्तो देखने, हंसी कूँपलियाँ ।
मो बीती तोय बीतसी, धीरी रह बापरियाँ ॥ कब पान मुख बोलियो, कब तरुवर दियो जवाब । वीर वखाणी उपमा, अनुयोग द्वार मंझार ॥
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