Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 354
________________ ग्यारहवाँ भाषा पद - पर्याप्तक भाषा के भेद उत्तर - हे गौतम! भाषा दो प्रकार की कही गयी है। वे इस प्रकार हैं- १. पर्याप्तक और २. अपर्याप्तक । पज्जत्तिया णं भंते! भासा कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - सच्चा य मोसा य ॥ ३८७ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक भाषा कितने प्रकार की कही गयी है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक भाषा दो प्रकार की कही गयी है। वे इस प्रकार हैं। और २ मृषा । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में भाषा दो प्रकार की कही गयी है - पर्याप्तक भाषा और अपर्याप्तक भाषा । जो भाषा प्रतिनियत रूप से निश्चित अर्थ रूप से जानी जा सकती है। अर्थात् अर्थ का सम्यक् या असम्यक् निर्णय करवाने में सामर्थ्य युक्त भाषा पर्याप्तक भाषा कहलाती है जो दो प्रकार की है१. सत्य और २. मृषा । ये दोनों भाषाएं सत्य या असत्य इस प्रकार निश्चित रूप से जानी जा सकती है। जो भाषा सत्य और असत्य दोनों रूप से मिश्रित होने से और सत्य तथा असत्य दोनों के प्रतिषेध रूप होने से प्रतिनियत रूप से सत्य या असत्य इस प्रकार निश्चित अर्थ रूप से नहीं जानी जा सकती है वह अपर्याप्तक भाषा कहलाती है। जो अर्थ का निर्णय करवाने के सामर्थ्य से रहित है ऐसी सत्यामृषा और असत्यामृषा रूप भाषा अपर्याप्तक है। पर्याप्तक भाषा के भेद सच्चा णं भंते! भासा पज्जत्तिया कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता । तंजहा जणवयसच्चा १, सम्मयसच्चा २, ठवण सच्चा ३, णामसच्चा ४, रूवसच्चा ५, पडुच्चसच्चा ६, ववहारसच्चा ७, भावसच्चा ८, जोगसच्चा ९, ओवम्मसच्चा १० । " जणवय १ सम्मय २ ठवणा ३ णामे ४ रूवे ५ पडुच्चसच्चे ६ य । ववहार ७ भाव ८ जोगे ९ दसमे ओवम्मसच्चे य १० " ॥ ३८८ ॥ - Jain Education International - ३४१ १. सत्य भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! पर्याप्तक सत्यभाषा कितने प्रकार की कही गयी है ? - उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक सत्य भाषा दस प्रकार की कही गयी है। वह इस प्रकार है - १. जनपद सत्य २. सम्मत सत्य ३. स्थापना सत्य ४. नाम सत्य ५. रूप सत्य ६. प्रतीत्य सत्य ( अपेक्षा सत्य) ७. व्यवहार सत्य ८. भाव सत्य ९. योग सत्य और १०. उपमा सत्य । For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org

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