Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
हैं-एक वचन और बहुवचन। हिन्दी में लिङ्ग भी दो ही होते हैं - स्त्रीलिंग और पुल्लिंग और वचन भी दो ही होते हैं-एक वचन और बहुवचन। अब भाषा के कारण आदि के विषय में प्रश्न करते हैं -
भाषा का स्वरूप भासा णं भंते! किमाइया, किंपवहा, किंसंठिया, किंपजवसिया?
गोयमा! भासा णं जीवाइया, सरीरप्पहवा, वजसंठिया, लोगंतपजवसिया पण्णत्ता। __कठिन शब्दार्थ - किं - क्या, आइया - आदिका-प्रारम्भिका, पवहा - प्रभवा-उत्पत्ति, पजवसिया- पर्यवसान (अन्त), वज संठिया - वज्र संस्थिता, अणुमया - अनुमत।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! भाषा का मूल कारण क्या है ? भाषा किस से उत्पन्न होती है ? उसका आकार कैसा है ? भाषा का पर्यवसान (अन्त) कहाँ होता है ?
उत्तर - हे गौतम! भाषा का मूल कारण जीव है, भाषा शरीर से उत्पन्न होती है, वज्र का जैसा . उसका आकार है और लोक के अन्त में उसका पर्यवसान (अन्त) होता है।
भासा कओ य पभवइ? कइहिं च समएहिं भासइ भासं? भासा कइप्पगारा? कइ वा भासा अणुमया उ?॥ सरीरप्पहवा भासा, दोहि य समएहिं भासइ भासं। भासा चउप्पगारा, दोण्णि य भासा अणुमया उ॥३८६॥
भावार्थ - प्रश्न - १. भाषा कहाँ से उत्पन्न होती है ? २. भाषा कितने समयों में बोली जाती है? ३. भाषा कितने प्रकार की है? ४. कितनी भाषाएं अनुमत-बोलने योग्य है ?
उत्तर - १. शरीर से भाषा उत्पन्न होती है २. दो समयों में भाषा बोली जाती है ३. भाषा चार प्रकार की होती है ४. उनमें से दो भाषाएं अनुमत-बोलने योग्य है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भाषा विषयक निम्न प्रश्नों का समाधान किया गया है -
१. भाषा का मौलिक कारण क्या है ? - भाषा का मूल कारण जीव हैं क्योंकि जीव के तथाविध प्रयत्नों के बिना अवबोध के कारण भूत भाषा की उत्पत्ति संभव नहीं है। इस संबंध में आचार्य भद्रबाहु स्वामी कहते हैं -
तिविम्मि सरीरम्मि, जीव पएसा हवंति जीवस्स। जहिं उगेण्हइ गहणं, तो भासइ भासओ भासं॥
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