Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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३२०
प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर
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हे गौतम! एक नैरयिक वर्ण चरम की अपेक्षा से कदाचित् चरम है और कदाचित् अचरम है। इसी प्रकार निरन्तर एक वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए।
णेरड्या णं भंते! वण्ण चरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ?
गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया ।
भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! अनेक नैरयिक जीव वर्ण चरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम हैं ? उत्तर - हे गौतम! अनेक नैरयिक जीव वर्ण चरम की अपेक्षा से चरम भी हैं और अचरम भी हैं। इसी प्रकार लगातार अनेक वैमानिक देवों तक कथन करना चाहिए।
रइए णं भंते! गंध चरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ?
गोयमा! सिय चरिमे, सिय अचरिमे । एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एक नैरयिक गन्ध चरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम है ? उत्तर - हे गौतम! एक नैरयिक गन्ध चरम की अपेक्षा से कदाचित् चरम है और कदाचित् अचरम है। लगातार एक वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार प्ररूपणा करनी चाहिए ।
रड्या णं भंते! गंध चरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ?
गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! गन्ध चरम की अपेक्षा से अनेक नैरयिक जीव चरम हैं अथवा अचरम हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! अनेक नैरयिक जीव गन्ध चरम की अपेक्षा से चरम भी हैं और अचरम भी हैं। इसी प्रकार लगातार वैमानिक देवों तक प्ररूपणा करनी चाहिए।
रइए णं भंते! रस चरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ?
गोयमा ! सिय चरिमे, सिय अचरिमे । एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! एक नैरयिक जीव रस चरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? उत्तर - हे गौतम! एक नैरयिक जीव रस चरम की अपेक्षा से कदाचित् चरम है और कदाचित् अचरम है । निरन्तर एक वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार प्रतिपादन करना चाहिए।
णेरड्या णं भंते! रस चरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ?
गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया ।
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भावार्थ- प्रश्न हे भगवन्! अनेक नैरयिक रस चरम की अपेक्षा से चरम हैं अथवा अचरम ? उत्तर - हे गौतम! वे रस चरम की अपेक्षा से चरम भी हैं और अचरम भी हैं। इसी प्रकार लगातार वैमानिक देवों तक कहना चाहिए।
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