Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ग्यारहवाँ भाषा पद - प्रज्ञापनी भाषा
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उत्तर - हे गौतम! गाय, मृग, पशु और पक्षी यह भाषा प्रज्ञापनी है । किन्तु यह भाषा मृषा नहीं है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में प्रज्ञापनी भाषा का प्रतिपादन किया गया है। प्रज्ञापनी भाषा का अर्थ है - जिसमें अर्थ (पदार्थ) का प्रतिपादन (प्ररूपण) किया जाय उसे प्रज्ञापनी भाषा कहते हैं ।
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उपर्युक्त सूत्र में गाय आदि शब्द जाति वाचक हैं। जैसे गाय कहने से गो जाति का बोध होता है और जाति में स्त्री, पुरुष और नपुंसक तीनों लिंगों वाले आ जाते हैं । इसलिए गाय आदि शब्द तीन लिंगी होते हुए भी इस प्रकार एक लिंग में उच्चारण की जाने वाली भाषा पदार्थ का कथन करने के लिए प्रयुक्त होने से प्रज्ञापनी है तथा यह यथार्थ वस्तु का कथन करने वाली होने से सत्य है क्योंकि शब्द चाहे किसी भी लिंग का हो, यदि वह जातिवाचक है तो देश काल और प्रसंग के अनुसार उस जाति के अन्तर्गत वह तीनों लिंगों वाले अर्थों का बोधक होता है। यह भाषा न तो परपीड़ा जनक है और न किसी को धोखा देने आदि उद्देश्य से बोली जाती है। इसलिए यह प्रज्ञापनी भाषा असत्य नहीं है ।
अह भंते! जा य इत्थीवऊ, जा य पुमवऊ, जा य णपुंसगवऊ, पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ?
हंता गोयमा ! जा य इत्थीवऊ, जा य पुमवऊ, जा य णपुंसगवऊ पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ॥ ३७५ ॥
कठिन शब्दार्थ - इत्थीवऊ - स्त्रीवाक् - स्त्रीलिंगवाची, पुमवऊ - पुंवाक्- पुरुषलिंगवाची, णपुंसगवऊ - नपुंसकवाक्- नपुंसक लिंगवाची ।
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भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जो स्त्रीवाक् (स्त्रीलिंगवाची), पुंवाक् (पुरुषलिंगवाची), नपुंसकवाक् (नपुंसकलिंगवाची ) यह भाषा प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा-असत्य नहीं है ?
उत्तर - हे गौतम! स्त्रीलिंगवाचक, पुरुषलिंगवाचक और नपुंसकलिंग वाचक यह भाषा प्रज्ञापनी (अर्थ का प्रतिपादन करने वाली) है। यह भाषा असत्य नहीं है।
विवेचन - शाला, माला आदि स्त्री लिङ्ग वाचक भाषा है । घट, पट आदि पुल्लिङ्ग-पुरुषलिङ्गवाचक भाषा है तथा धनम् वनम् आदि नपुंसकलिङ्गवाचक भाषा है परन्तु इन शब्दों से स्त्रीत्व, पुरुषत्व या नपुंसकत्व के लक्षण घटित नहीं होते हैं ऐसी स्थिति में किसी शब्द को स्त्रीलिंग, किसी को पुरुषलिंग और किसी को नपुंसकलिंग कहना क्या प्रज्ञापनी भाषा है ?
भगवान् ने इसका उत्तर हाँ में दिया है। किसी भी शब्द का प्रयोग किया जाता है तो वह शब्द स्त्री, पुरुष या नपुंसक के लक्षणों का वाचक नहीं होता ? विभिन्न लिंगों वाले शब्दों के लिंगों की व्यवस्था शब्दानुशासन (व्याकरण) या गुरु की उपदेश परम्परा से होती है। इस प्रकार शाब्दिक व्यवहार
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