Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
अह भंते! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ-अयं मे अइराउले, अयं मे अइराउलेत्ति?
गोयमा! णो इणटे समटे, णण्णत्थ सण्णिणो। कठिन शब्दार्थ - अइराउले - अधिराजकुल-स्वामी का घर।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या मन्दकुमार या मंदकुमारिका यह जानती है कि यह मेरे स्वामी का घर है?
उत्तर - हे गौतम! सिवाय संज्ञी के यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् संज्ञी मनुष्य (कुमार या कुमारिका) जान सकते हैं।
'अह भंते! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ-अयं मे भट्टिदारए, अयं मे भट्टिदारएत्ति?
गोयमा! णो इणढे समढे, णण्णत्थ सण्णिणो॥३८१॥ कठिन शब्दार्थ - भट्टिदारए - भर्तृदारक-स्वामी पुत्र।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या मंदकुमार या मन्दकुमारिका यह जानती है कि यह मेरे स्वामी का पुत्र है ?
उत्तर - हे गौतम! सिवाय संज्ञी के यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् संज्ञी मनुष्य (कुमार अथवा . कुमारिका) जान सकते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मंदकुमार एवं मंदकुमारिका की भाषा विषयक निरूपण किया गया है। मंदकुमार का अर्थ है-छोटा बालक, नवजात शिशु-उत्तानशय (चत्ता सोने वाला) पसवाड़ा बदलने की भी शक्ति नहीं है ऐसा, जिसका बोध अभी परिपक्व नहीं है। इसी प्रकार मंदकुमारिका का अर्थ है - छोटी बालिका, अबोध बालिका। ऐसे छोटे बालक और बालिका के संबंध में प्रश्न है कि जब वह भाषा योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें भाषा रूप में परिणत कर बोलता है तब क्या उसे मालूम रहता है कि मैं यह बोल रहा हूँ या मैं यह खा रहा हूँ या ये मेरे माता पिता है अथवा यह मेरे स्वामी का घर है या यह मेरे स्वामी का पुत्र है ? भगवान् फरमाते हैं कि - "णण्णत्थ सण्णिणो" - सिवाय संज्ञी के यह अर्थ समर्थ नहीं है। यहाँ अन्यत्र' शब्द परिवर्जन के अर्थ में है। यहाँ संज्ञी का अर्थ समनस्का मन वाला नहीं है अपितु संज्ञा से युक्त है। संज्ञा का अर्थ है - अवधिज्ञान, जाति स्मरण ज्ञान या विशिष्ट मन का सामर्थ्य। जो बालक बालिका इस प्रकार की विशिष्ट संज्ञा से युक्त होते हैं वे ही इन बातों को जानते हैं।।
यद्यपि मंदकुमार (छोटा बालक) या मंदकुमारिका (छोटी बालिका) मनः पर्याप्ति से पर्याप्त हैं
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