Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दसवां चरम पद - गति आदि की अपेक्षा चरम अचरम आदि वक्तव्यता .
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विवेचन - परिमंडल आदि संस्थानों के अल्पबहुत्व-अवगाढ़ प्रदेशों की अपेक्षा से समझनी चाहिये। संख्यात प्रदेशावगाढ़ असंख्य प्रदेशी परिमंडल आदि संस्थानों में प्रति प्रदेश असंख्य प्रदेशों का संक्रमण तथा संख्यात-असंख्यात प्रदेशावगाढ़ अनंत प्रदेशी परिमंडल आदि संस्थानों में प्रति प्रदेश अनन्त प्रदेशों का संक्रमण समझना चाहिये। यहाँ पर आकाश (अवगाढ़) प्रदेशों की मुख्यता करके असंख्य प्रदेशों या अनन्त प्रदेशों को भी आकाश (अवगाढ़) प्रदेशों जितना मान लिया गया है। 'संक्रमण' - क्षेत्र से संख्यात असंख्यात आकाश प्रदेश होने पर भी द्रव्य रूप से एक-एक आकाश प्रदेश पर असंख्य और अनन्त प्रदेशों का स्थित होना। यहाँ पर जघन्य प्रदेशावगाढ़ (बीस प्रदेश एवं बीस प्रदेशावगाढ़) परिमण्डल आदि संस्थान नहीं समझ कर तथा प्रकार के (जिससे कि संख्यात गुणा, असंख्यात गुणा की अल्प-बहुत्व बराबर घटित हो सके ऐसे) मध्यम आदि प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल आदि संस्थान समझ लेना चाहिए।
यहाँ पर मूल पाठ में जो 'संक्रमण' शब्द दिया है उसका अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार किया है - क्षेत्र के विषय में जब द्रव्य का विचार किया जाय उसको संक्रमण कहते हैं। उस संक्रमण के विषय में अनन्त गुणा कहना चाहिए। उस समय मूल पाठ इस प्रकार होगा - "सव्वत्थोवे एगे अचरिमे, चरिमाइं खेतओ असंखेजगुणाई, दव्यओ अणंतगुणाई, अचरिमं चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई।" .
अर्थात् - सबसे थोड़ा एक अचरम, क्षेत्र की अपेक्षा बहुत चरम असंख्यात गुणा और द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुणा। एक अचरम और बहुत चरम ये दोनों मिल कर विशेषाधिक हैं।
गति आदि की अपेक्षा चरम अचरम आदि वक्तव्यता अब गति आदि ग्यारह बोलों की चरम आदि का वर्णन इस प्रकार है -
गति, स्थिति, भव, भाषा, आण-प्राण (श्वासोच्छ्वास) आहार, भाव, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श ये ग्यारह बोल हैं। इन ग्यारह बोलों के द्वारा नैरयिक आदि चौबीस दण्डकों पर चरम अचरम आदि की अपेक्षा से विचार किया जायेगा।
नोट - जहाँ पर चरिमे, अचरिमे, जेरइए, वेमाणिए शब्द आता है वहाँ पर एक वचन सम्बन्धी प्रश्न और उत्तर हैं। जहां पर णेरड्या, वेमाणिया, चरिमा, अचरिमा शब्द आता है वहाँ बहुवचन सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं ऐसा समझना चाहिए।
एक वचन के उत्तर में "सिय चरिमे सिय अचरिमे" ऐसा पाठ है। "सिय" शब्द का अर्थ है . कदाचित्। एक वचन आश्रयी चौबीस ही दण्डक का एक जीव कभी चरम और कभी अचरम मिल सकता है और कभी नहीं भी मिल सकता है। निष्कर्ष यह है कि यह बोल अशाश्वत है।
बहुवचन के उत्तर में "चरिमा वि, अचरिमा वि" ऐसा पाठ है। जिसका अर्थ है चौबीस ही
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