Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 324
________________ दसवां चरम पद - संस्थान की अपेक्षा चरम अचरम आदि ......................... ◆........................❖❖❖400000000 Jain Education International सोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं संखिज्ज गुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, पएसट्टयाए सव्वत्थोवा परिमंडलसंठाणस्स असंखिज्ज पएसियस्स संखिज्ज एसोगाढस्स चरिमंतपएसा, अचरिमंतपएसा संखिज्ज गुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपसा य दो वि विसेसाहिया, दव्वट्ठपए सट्टयाए - सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखिज्ज पएसियस्स संखिज्ज पएसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं संखिज्ज गुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं चरिमंतपएसा संखिज्ज गुणा, अचरिमंतपएसा संखिज्ज गुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया । एवं जाव आयए । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! असंख्यात प्रदेशी एवं संख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान के अचरम, अनेक चरम, चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? ३११ ❖❖❖❖❖❖❖0 उत्तर हे गौतम! द्रव्य की अपेक्षा - असंख्यात प्रदेशी एवं संख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान का एक अचरम सबसे थोड़ा है, उसकी अपेक्षा अनेक चरम संख्यात गुणा अधिक हैं, उनसे एक अचरम और अनेक चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा - असंख्यात प्रदेशी संख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान के चरमान्त प्रदेश, सबसे थोड़े हैं, उनकी अपेक्षा अचरमान्त प्रदेश संख्यात गुणा हैं, उससे चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश, ये दोनों मिल कर विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा - असंख्यात प्रदेशी संख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान का एक अचरम सबसे थोड़ा हैं, उसकी अपेक्षा अनेक चरम संख्यात गुणा अधिक हैं, उनसे एक अचरम और बहुत चरम ये दोनों मिल कर विशेषाधिक हैं, उनसे अचरमान्त प्रदेश संख्यात गुणा हैं, उनसे चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश, ये दोनों मिल कर विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार आयत तक के चरमादि के अल्पबहुत्व के विषय में कथन करना चाहिए। परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखिज्ज पएसियस्स असंखिज्ज पएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! जहा रयणप्पभाए अप्पाबहुयं तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं, एवं जाव आयए ॥ ३६९ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! असंख्यात प्रदेशी एवं असंख्यात प्रदेशावगाढ़ परिमण्डल संस्थान For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414