Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दसवां चरम पद - गति चरम-अचरम .
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णेरइए णं भंते! गइ चरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे, सिय अचरिमे, एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए। भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन् ! एक नैरयिक जीव गति चरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जीव गति चरम की अपेक्षा से कदाचित् चरम है और कदाचित् अचरम है। इसी प्रकार एक असुरकुमार से लेकर लगातार एक वैमानिक देव तक जानना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गति की अपेक्षा चरम-अचरम का निरूपण किया गया है। गति पर्याय रूप चरम को गति चरम कहते हैं। प्रश्न के समय जो जीव मनुष्य गति में विद्यमान है और उसके पश्चात् फिर कभी किसी गति में उत्पन्न नहीं होगा, अपितु मुक्ति प्राप्त कर लेगा, इस प्रकार उस जीव की वह मनुष्य गति चरम अर्थात् अन्तिम है, वह गति चरम है, जो जीव पृच्छाकालिक (प्रश्न करते समय) गति के पश्चात् पुनः किसी गति में उत्पन्न होगा, वही गति जिसकी अन्तिम नहीं है, वह गति-अचरम है। सामान्यतया गति चरम मनुष्य ही हो सकता है, क्योंकि मनुष्य गति से ही मुक्ति प्राप्त होती है। इस अपेक्षा से तद्भवमोक्षगामी जीव गतिचरम है, शेष गति-अचरम हैं। विशेष की अपेक्षा से विचार किया जाय तो जो जीव जिस गति में अन्तिम बार है, वह उस गति की अपेक्षा से गति चरम है। जैसे - प्रश्न करते समय समय कोई जीव नरक गति में विद्यमान है, किन्तु नरक से निकलने के बाद फिर वह कभी भी नरकगति में उत्पन्न नहीं होगा, उसे विशेष अपेक्षा से 'नरकगति चरम' कहा जा सकता है, किन्तु सामान्यतया उसे 'गति चरम' नहीं कहा जा सकता, क्योंकि नरक गति से निकलने पर उसे दूसरी गति में जन्म लेना ही पड़ेगा। अतएव सामान्य गति चरम मनुष्य ही होता है। सामान्य जीव विषयक जो गति चरम सूत्र है, वहाँ सामान्य दृष्टि से मनुष्य को ही कदाचित् गति चरम समझना चाहिए। परन्तु यहाँ आगे के जितने भी सूत्र हैं, वे विशेष दृष्टि को लेकर हैं, इसलिए गति चरम का अर्थ हुआ - जो जीव जिस गति पर्याय से निकल कर पुनः उसमें उत्पन्न नहीं होगा, वह उस गति की अपेक्षा से गति चरम है और जो जीव पुनः उस गति में उत्पन्न होगा, वह उस गति की अपेक्षा से गति अचरम है। ___णेरइया णं भंते! गइचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा?
गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि, एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अनेक नैरयिक जीव गति चरम की अपेक्षा से चरम हैं अथवा अचरम हैं?
उत्तर - हे गौतम! अनेक नैरयिक जीव गति चरम की अपेक्षा से चरम भी हैं और अचरम भी हैं। इसी प्रकार लगातार अनेक वैमानिक देवों तक कह देना चाहिए।
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