Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
दण्डकों में से प्रत्येक दण्डक के बहुत जीव सदा चरम भी मिलते हैं और अचरम भी मिलते हैं। इसलिए बहुवचन सम्बन्धी उत्तर का बोल शाश्वत है। चारों गति के विरह काल में भी चरम, अचरम बहुत जीव मिलते ही हैं। इसीलिए यह बाल शाश्वत है।
___ आगे गति चरम, स्थिति चरम आदि ग्यारह बोलों से विचारणा की गयी है। उसको इस प्रकार समझना चाहिए कि जो जीव नरक आदि गति में नहीं जायेगा और वहाँ जाकर भाषा नहीं बोलेगा आहार आदि नहीं करेगा किन्तु उस गति और उस भव में रहते हुए अनेकों बार भाषा बोलते हुए भी भाषा चरम और आहार करते हुए भी आहार चरम आदि कहा जा सकता है। ऐसे ही सभी चरमों में उन उन दण्डकों में भी समझ लेना चाहिए।
कहीं कहीं ऐसी व्याख्या मिलती है कि जो नरकादिपने अन्तिम बार भाषा बोल रहा है या बोल रहे हैं। वे भाषा चरम हैं। किन्तु यह व्याख्या करना उचित नहीं है क्योंकि ऐसी व्याख्या करने पर तो बहुवचन के प्रश्नों के उत्तर में जो आहार चरम, भाषा चरम आदि को शाश्वत बताया है वह घटित नहीं हो सकेगा। अत: उपर्युक्त पहली व्याख्या करना ही आगमानुकूल है, अतएव उचित है। ...
जो जीव जिस गति का चरम बन गया है उस गति में होने वाली स्थिति, भव आदि ग्यारह ही बोलों का चरम समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार भव, भाषा आदि के लिए भी समझ लेना चाहिए कि वह आगे आगे के सभी बोलों का चरम बन गया है। परन्तु स्थिति के विषय में दो विचार धाराएं हैं यथा- जो जिस स्थिति का चरम बना है वह वापिस उस गति में तो जा सकता है किन्तु उस स्थिति को प्राप्त नहीं करेगा जैसे कि कोई नैरयिक नरक में दस सागरोपम की स्थिति में गया था वह वापिस नरक गति में तो जा सकता है किन्तु वह दस सागरोपम की स्थिति को प्राप्त नहीं करेगा किन्तु दस सागरोपम से कम या ज्यादा स्थिति प्राप्त कर सकता है। दूसरी विचार धारा यह है कि वह उस गति सम्बन्धी सभी 'स्थिति का चरम बन गया है अर्थात् नरक गति की दस हजार वर्ष की स्थिति से लेकर तेतीस सागरोपम की स्थिति तक सभी स्थितियों को प्राप्त नहीं करेगा। निष्कर्ष यह है कि वह वापिस नरक गति में जायेगा ही नहीं तो फिर स्थिति प्राप्त करने का तो प्रश्न रहता ही नहीं है। इन दोनों मान्यताओं में से कौनसी ठीक है यह तत्त्व तो केवली गम्य है।
१. गति चरम-अचरम जीवे णं भंते! गइ चरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे, सिय अचरिमे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जीव गति चरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम है ?
उत्तर - हे गौतम! जीव गति चरम की अपेक्षा से कदाचित् कोई चरम है, कदाचित् कोई अचरम है।
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