Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२५८
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆...................
-
प्रज्ञापना सूत्र
....
...........................�❖❖❖❖❖00000
गोयमा ! सव्वत्थोवा णेरड्या मेहुण सण्णोवउत्ता, आहार सण्णोवउत्ता संखिज गुणा, परिग्गह सण्णोवउत्ता संखिज्जगुणा, भय सण्णोवउत्ता संखिज्जगुणा ॥ ३३९ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन आहार संज्ञोपयुक्त आहार संज्ञा के उपयोग वाले, भय संज्ञा के उपयोग वाले, मैथुन संज्ञा के उपयोग वाले और परिग्रह संज्ञा के उपयोग वाले नैरयिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत्व, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े नैरयिक मैथुन संज्ञा के उपयोग वाले हैं, उनसे आहार संज्ञा के उपयोग वाले संख्यात गुणा हैं, उनसे परिग्रह संज्ञा के उपयोग वाले संख्यात गुणा हैं और उनसे भय संज्ञा के उपयोग वाले नैरयिक संख्यात गुणा हैं।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में चारों संज्ञाओं की अपेक्षा नैरयिक जीवों का अल्पबहुत्व कहा गया है। जो इस प्रकार हैं - सबसे थोड़े नैरयिक मैथुन संज्ञा के उपयोग वाले हैं क्योंकि उन्हें चक्षु के निमिष मात्र काल भी सुख नहीं है अपितु निरन्तर अति प्रबल दुःखादि से संतप्त है कहा है -
अच्छिनिमीलणमेतं णत्थि सुहं दुक्खमेव पडिबद्धं ।
णरए णेरइयाणं अहोणिसं पच्चमाणाणं ॥
नरक में दिन रात दुःख पाते हुए नैरयिकों को आँख की पलक झपने जितने समय भी सुख नहीं मिलता । अतः लगातार दुःख की आग में जलने वाले नैरयिकों को मैथुन की इच्छा नहीं होती । कदाचित् किसी को मैथुन संज्ञा होती भी है तो वह अत्यंत थोड़े काल की होती है अतः नैरयिकों में सबसे थोड़े मैथुन संज्ञा के उपयोग वाले कहे गये हैं। उनसे आहार संज्ञा के उपयोग वाले नैरयिक संख्यात गुणा होते हैं क्योंकि प्रचुर दुःख वाले नैरयिकों को बहुत काल तक आहार की संज्ञा बनी रहती है। उनसे परिग्रह संज्ञा के उपयोग वाले नैरयिक संख्यात गुणा है क्योंकि आहार की इच्छा शरीर के लिए होती है किन्तु परिग्रह की इच्छा तो शरीर और इसके अलावा अन्य शस्त्र आदि वस्तुओं के लिए होती है और बहुत काल तक अवस्थित रहती है अतः परिग्रह संज्ञा के उपयोग वाले संख्यात गुणा होते हैं उससे भय संज्ञा के उपयोग वाले संख्यात गुणा हैं क्योंकि नरक में नैरयिकों को चारों ओर से मृत्यु पर्यंत भय बना रहता है। अतः प्रश्न के समय भय संज्ञा के उपयोग वाले नैरयिक बहुत अधिक होते हैं।
Jain Education International
***❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖00
तिर्यंचयोनिकों में संज्ञाओं का अल्प बहुत्व
तिरिक्खजोणिया णं भंते! किं आहार सण्णोवउत्ता जाव परिग्गह सण्णोवउत्ता ? गोयमा ! ओसण्णं कारणं पडुच्च आहार सण्णोवउत्ता, संतइभावं पडुच्च आहार सण्णोवउत्ता वि जाव परिग्गह सण्णोवउत्ता वि।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org