Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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नववां योनि पद - कूर्मोन्नता आदि तीन योनियाँ
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गर्भरूप में उत्पन्न होते हैं, सामान्य और विशेष रूप से उनकी वृद्धि (चय-उपचय) होती है, किन्तु उनकी निष्पत्ति नहीं होती अर्थात् जन्म नहीं लेते हैं।
वंशीपत्रा योनि पृथक् (सामान्य) जनों की माताओं की होती है। वंशीपत्रा योनि में पृथक् साधारण जीव गर्भ में आते हैं।
नोट:- सचित्त, शीत, संवृत्त इन तीन योनियों का अल्पबहुत्व मूल पाठ में दिया गया है परन्तु कूर्मोन्नता आदि तीन योनियों का अल्प बहुत्व मूल पाठ में नहीं दिया गया है किन्तु थोकड़ा वाले इन तीन का अल्प बहुत्व इस प्रकार बोलते हैं - ___ अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े शंखावर्ता योनि वाले मनुष्य होते हैं उनसे कूर्मोन्नता योनि वाले संख्यात गुणा और उनसे वंशीपत्रा योनि वाले मनुष्य संख्यात गुणा होते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में योनि तीन प्रकार की कही गई हैं - १. कूर्मोन्नता - जो योनि कछुए की पीठ की तरह ऊँची उठी हुई या उभरी हुई हो २. शंखावर्ता - जो योनि शंख की तरह आवर्त वाली हो ३. वंशीपत्रा - जो योनि मिले हुए बांस के दो पत्रों के आकार वाली हो।
तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव इन ५४ उत्तम पुरुषों की माताओं के कूर्मोन्नता योनि होती हैं। चक्रवर्ती की श्रीदेवी के शंखावर्ता योनि होती है। इस योनि में जीव आते हैं, गर्भ रूप से उत्पन्न होते हैं, संचित होते हैं किन्तु उनकी निष्पत्ति नहीं होती अर्थात् उसमें जीव जन्म नहीं लेते हैं। इस सम्बन्ध में प्राचीन आचार्यों का मत है कि शंखावर्ता योनि में आये हुए जीव अति प्रबल कामाग्नि के परिताप से वहीं योनि में ही विनष्ट हो जाते हैं। . कूर्मोन्नता, शंखावर्ता, वंशीपत्रा ये तीनों योनियाँ मनुष्यों की विशेष प्रकार की योनियाँ बतलाई गयी हैं।
प्रश्न - क्या कूर्मोन्नता योनि में उत्तम पुरुष ही जन्म लेते हैं ? ..
उत्तर - कूर्मोन्नता योनि के विषय में इस प्रकार समझना चाहिए कि तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि उत्तम पुरुषों का जन्म तो कूर्मोन्नता योनि में ही होता है। निष्कर्ष यह है कि कूर्मोन्नता योनि में उत्तम पुरुषों के अतिरिक्त सामान्य पुरुष भी उत्पन्न हो सकते हैं। जैसे कि - मरुदेवी माता की कुक्षि से प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के साथ एक लड़की का भी जन्म हुआ था। जिसका नाम सुमंगला रखा गया। राजा ऋषभदेव के दो पत्नियाँ थीं यथा-सुमंगला (सहोदरा-साथ जन्म हुआ)
और सुनन्दा। सुमंगला के उदर से भरत चक्रवर्ती और ब्राह्मी का जन्म हुआ था। इसके बाद सुमंगला के उदर से ही अनुक्रम से उनपचास युगल पुत्रों (९८ पुत्रों) का जन्म हुआ था। सुनन्दा के उदर से बाहुबली और सुन्दरी का जन्म हुआ था।
ज्ञाता सूत्र के आठवें अध्ययन में उन्नीसवें तीर्थंकर मल्ली भगवती का वर्णन है। मिथिला नगरी के
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