Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दसवां चरम पद - परमाणु पुद्गल आदि के चरम अचरम
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अष्ट प्रदेशिक स्कन्ध के विषय में इन छब्बीस भंगों में से कितने और कौन से भंग पाये जाते हैं?
उत्तर - हे गौतम! अष्ट प्रदेशिक स्कन्ध १. कथंचित् चरम है, २. अचरम नहीं है ३. कथंचित् अवक्तव्य है किन्तु ४. न तो अनेक चरम रूप है, ५. न अनेक अचरम रूप है और ६. न ही अनेक अवक्तव्य रूप है ७. कथंचित् एक चरम और एक अचरम है, ८. कथंचित् एक चरम और अनेक अचरम रूप है, ९. कथंचित् अनेक चरम रूप और एक अचरम है, १०. कथंचित् अनेक चरम रूप और अनेक अचरम रूप है, ११. कथंचित् चरम और अवक्तव्य है, १२. कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्य रूप है, १३. कथंचित् अनेक चरम रूप और एक अवक्तव्य रूप है, १४. कथंचित् अनेक चरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है, किन्तु १५. न तो वह एक अचरम और एक अवक्तव्य है, १६. न एक अचरम और अनेक अवक्तव्य रूप है, १७. न अनेक अचरम रूप और एक अवक्तव्य रूप है
और १८. न ही अनेक अचरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है, किन्तु १९. कथंचित् एक चरम एक अचरम और एक अवक्तव्य रूप है, २०. कथंचित् एक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्य रूप है, २१. कथंचित् एक चरम अनेक अचरम रूप और एक अवक्तव्य है, २२. कथंचित् एक चरम, अनेक अचरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है, २३. कथंचित् अनेक चरम रूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, २४. कथंचित् अनेक चरम रूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्य रूप है, २५. कथंचित् अनेक चरम रूप, अनेक अचरम रूप और एक अवक्तव्य रूप है, २६. कथंचित् अनेक चरम, अनेक अचरम और अनेक अवक्तव्य रूप हैं।
विवेचन - अष्ट प्रदेशिक स्कन्ध में इन छब्बीस भंगों में से आठ भंग नहीं पाये जाते हैं। वे इस प्रकार हैं - दूसरा, चौथा, पांचवां, छठा, पन्द्रहवां, सोलहवां, सतरहवां और अठारहवां। इन आठ भंगों को छोड़कर शेष अठारह भंग पाये जाते हैं। ___ आठ प्रदेशिक स्कन्ध से लेकर नौ प्रदेशिक, दस प्रदेशिक, संख्यात प्रदेशिक, असंख्यात प्रदेशिक
और अनन्त प्रदेशिक, इन सब स्कन्धों में ये आठ भंग नहीं पाये जाते हैं। शेष भंग यथा योग्य पाये जा सकते हैं।
यह बात पहले बताई जा चुकी है कि चरम, अचरम और अवक्तव्य इन तीन पदों के असंयोगी और संयोगी छब्बीस भंग बनते हैं किन्तु आठ भंग जो ऊपर बताये गये हैं वे सब शून्य हैं अर्थात् उनके संस्थान (स्थापना और आकृति) नहीं बनते हैं। इसीलिए शून्य हैं। भंग तो बनते हैं इसीलिए छब्बीस भंग बनाये गये हैं एवं बताये गये हैं किन्तु आठ भंग शून्य हो जाने के कारण अठारह भंग की स्थापना पाई जाती है।
यहाँ पर (इन भंगों में) 'चरम' का अर्थ - विवक्षित स्कन्ध के अन्त में रहे हुए प्रदेश। 'अचरम'
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