Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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- दसवां चरम पद - परमाणु पुद्गल आदि के चरम अचरम
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१८. न ही अनेक अचरम रूप और अनेक अवक्तव्यरूप है किन्तु १९. कथंचित् एक चरम एक अचरम और एक अवक्तव्य है, २०. न एक चरम एक अचरम और अनेक अवक्तव्य रूप है, २१. न एक चरम अनेक अचरम रूप और एक अवक्तव्य है २२. न ही एक चरम, अनेक अचरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है किन्तु २३. कथंचित् अनेक चरम रूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, २४. कथंचित् अनेक चरम रूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्य रूप है, २५. कथंचित् अनेक चरम रूप, अनेक अचरम रूप और एक अवक्तव्य है और २६. कथंचित् अनेक चरम रूप, अनेक अचरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है। अभिप्राय यह हैं कि षट् (छह) प्रदेशी स्कन्ध में पहला, तीसरा, सातवां, आठवां, नववां, दसवां, ग्यारहवां, बारहवां, तेरहवां, चौदहवां, उन्नीसवां, तेईसवां, चौबीसवां, पच्चीसवां और छब्बीसवां ये पन्द्रह भंग पाये जाते हैं शेष ग्यारह भंग शून्य हैं।
सत्तपएसिए णं भंते! खंधे किं चरिमे, अचरिमे जाव अवत्तव्वयाई?
गोयमा! सत्तपएसिए णं खंधे सिय चरिमे १, णो अचरिमे २, सिय अवत्तव्वए ३, णो चरिमाइं ४, णो अचरिमाइं ५, णो अवत्तव्वयाइं ६, सिय चरिमे य अचरिमे य ७, सिय चरिमे य अचरिमाइं च ८, सिय चरिमाइं च अचरिमे य ९, सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च १०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ११, सिय चरिमे य अवत्तव्वयाइं च १२, सिय चरिमाइं च अवत्तव्वए य १३, सिय चरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १४, णो अचरिमे य अवत्तव्वए य १५, णो अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च १६, णो अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७, णो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८, सिय चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वए य १९, सिय चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च २०, सिय चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१, णो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२, सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वए य २३, सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वयाई च २४, सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २५, सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २६॥३६४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सप्त प्रदेशिक स्कन्ध के विषय में इन छब्बीस भंगों में से कितने और कौनसे भंग पाये जाते हैं ? - उत्तर - हे गौतम! सप्त प्रदेशिक स्कन्ध १. कथंचित् चरम है, २. अचरम नहीं है ३. कथंचित् अवक्तव्य है, ४. किन्तु वह अनेक चरम रूप नहीं है ५. न अनेक अचरम रूप है और ६. न ही अनेक अवक्तव्य रूप है किन्तु ७. कथंचित् चरम और अचरम है, ८. कथंचित् एक चरम और अनेक अचरम
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