Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 317
________________ ३०४ प्रज्ञापना सूत्र का अर्थ - विवक्षित स्कन्ध के मध्य में रहे हुए प्रदेश। अवक्तव्य' का अर्थ-समश्रेणी में रहे हुए प्रदेशों के ऊपर या नीचे प्रतरान्तर में रहे हुए प्रदेश। 'चरम एक' - इसको इन भंगों में तीन तरह से बताया गया है - १. सम श्रेणी में दो आकाश प्रदेशों पर रहे हुए २. ओज प्रदेशी प्रतरवृत्त जघन्य प्रदेशावगाढ की तरह पूर्ण वृत्त के चारों दिशाओं के प्रदेश ३. युग्म प्रदेशी प्रतरवृत्त जघन्य प्रदेशावगाढ के अर्द्ध. भाग रूप ६ आकाश प्रदेशों पर रहे हुए प्रदेश। इसमें अर्द्धवृत्त के धनुषाकार चार प्रदेशों को एक चरम माना गया है। संखिजपएसिए असंखिजपएसिए अणंतपएसिए खंधे जहेव अट्ठपएसिए तहेव पत्तेयं भाणियव्वं। भावार्थ - संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी और अनन्त प्रदेशी प्रत्येक स्कन्ध के विषय में, जैसे अष्ट प्रदेशी स्कन्ध के सम्बन्ध में कहा, उसी प्रकार कहना चाहिए। विवेचन - उपरोक्त छब्बीस भंगों का संग्रह करने वाली "संग्रहणी गाथाएं" इस प्रकार हैं - जो कि उपसंहार रूप में है। परमाणुम्मि य तइओ, पढमो तइओ य होंति दुपएसे। पढमो तइओ णवमो एक्कारसमो य तिपएसे॥१॥ पढमो तइओ णवमो दसमो एक्कारसो य बारसमो। भंगा चउप्पएसे तेवीसइमो य बोद्धव्वो॥२॥ पढमो तइओ सत्तम णव दस इक्कार बार तेरसमो। तेवीस चउव्वीसो पणवीसइमो य पंचमए॥३॥ बि चउत्थ पंच छटुं पणरस सोलं च सत्तरट्ठारं। वीसेक्कवीस बावीसगं च वजेज छटुंमि॥४॥ बि चउत्थ पंच छटुं पण्णर सोलं च सत्तरट्ठारं। बावीसइम विहूणा सत्तपएसंमि खंधम्मि॥५॥ बि चउत्थ पंच छटुं पण्णर सोलं च सत्तरद्वार। एए वजिय भंगा सेसा सेसेसु खंधेसु॥६॥३६५॥ भावार्थ - परमाणु पुद्गल में तृतीय (अवक्तव्य) भंग होता है। द्वि प्रदेशी स्कन्ध में प्रथम (चरम) और तृतीय (अवक्तव्य) भंग होते हैं। त्रि प्रदेशी स्कन्ध में प्रथम, तीसरा, नौवाँ और ग्यारहवाँ भंग होता है। चतुःप्रदेशी स्कन्ध में पहला, तीसरा, नौवाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ, बारहवां और तेईसवाँ भंग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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