Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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नववां योनि पद - नैरायक आदि में संवृत्त आदि योनियाँ
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विवृत्त - जो योनि खुली हुई हो अथवा बाहर से स्पष्ट प्रतीत होती है। जो पोल सहित हो वह विवृत्त है।
संवृत्त - विवृत्त - कुछ ढंकी कुछ खुली हुई योनि संवृत्त-विवृत्त कहलाती है।
यद्यपि नैरयिकों का उत्पत्ति स्थान-कुंभियों का मुंह खुला होता है किन्तु कुंभी में अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना में जहाँ पर नैरयिक उत्पन्न होते हैं। वह स्थान चारों तरफ से ढका हुआ होने से नैरयिकों की संवृत्त योनि मानी गई है। देवों के उपपात शय्या भी एक बारीक वस्त्र से ढकी हुई होने से उनकी संवृत्त योनि है। एकेन्द्रिय जीवों के उत्पत्ति स्थान पूरे लोक में होते हुए भी जहाँ पर एकेन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं। वह क्षेत्र सब तरफ से पहले उत्पन्न हुए उन जीवों से गिरा रहता है अर्थात् वृक्षादि के पत्ते में भी नये जीव बाहर के भाग में उत्पन्न नहीं होकर के ढके हुए भाग में उत्पन्न होते हैं। फिर बड़ी अवगाहना बढ़ने पर उनका शरीर बाहर दृष्टिगोचर होने लगता है। अतः एकेन्द्रियों में संवृत्त योनि बताई गई है। बेन्द्रियादि जीवों का उत्पत्ति स्थान सब तरफ से उन बेइन्द्रियों जीवों से घिरा हुआ नहीं होता है तथा पोल में होने से एकेन्द्रियों की तरह दबा (ढका) हुआ नहीं हो कर खुला होने से विवृत्त योनि होती है। धान्यादि में भी जहाँ बेइन्द्रियादि जीव उत्पन्न होते हैं वहाँ बाहर से पोल नहीं दिखाई देने पर भी अन्दर में पोल समझना। गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों की योनि संवृत्तविवृत्त मानी गई है। क्योंकि मनुष्यों के उत्पन्न होने की कुक्षि कुछ खुली व कुछ बन्द होती है। गर्भज जीवों के भी उत्पत्ति स्थान के किसी तरफ आहार वर्गणा के पुद्गल होने से तथा किसी तरफ नहीं होने से 'संवृत्त विवृत्तता' समझनी चाहिये। उत्पत्ति स्थान प्रच्छन्न होने से 'संवृत्त' एवं उदरादि के बढ़ने से "विवृत्त' इस प्रकार टीकाकारों ने गर्भज जीवों की 'संवृत्त विवृत्तता' समझाई है। ... एएसि णं भंते! जीवाणं संवुडा जोणियाणं वियडा जोणियाणं संवुडवियडा जोणियाणं अजोणियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा संवुडवियडा जोणिया, वियडा जोणिया असंखिजगुणा, अजोणिया अणंत गुणा, संवुडा जोणिया अणंतगुणा॥३५१॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन संवृत्तयोनिक जीवों, विवृतयोनिक जीवों, संवृत्त-विवृत्तयोनिक जीवों तथा अयोनिक जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक होते हैं? ____ उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े संवृत्त-विवृत्तयोनिक जीव होते हैं, उनसे विवृत्तयोनिक जीव असंख्यात गुणा अधिक होते हैं, उनसे अयोनिक जीव अनन्त गुणा होते हैं और उनसे भी संवृत्त योनिक नीव अनन्त गुणा अधिक होते हैं।
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