Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में संवृत्त आदि योनियों की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व बताया गया है- सबसे थोडे जीव संवृत्त विवृत्त योनि वाले होते हैं क्योंकि गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों और गर्भज मनुष्यों के ही संवृत्त-विवृत्त योनि होती है। उनसे विवृत्त योनि वाले जीव असंख्यात गुणा होते हैं क्योंकि तीन विकलेन्द्रिय, सम्मूछिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय एवं सम्मूर्छिम मनुष्य विवृत्त योनि वाले होते हैं उनसे अयोनिक जीव अनंत गुणा हैं क्योंकि सिद्ध भगवान् अनन्त हैं और उनसे भी संवृत्त योनि वाले जीव अनन्त गुणा होते हैं क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव सिद्धों से अनंत गुणा हैं और उनके संवृत्त योनि होती है।
मणुस्सेसु तिविहा जोणी। संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले पन्द्रह कर्म भूमि के मनुष्यों की अपेक्षा से तीन विशिष्ट योनियाँ।
कूर्मोन्नता आदि तीन योनियाँ कइविहा णं भंते! जोणी पण्णत्ता? गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता। तंजहा - कुम्मुण्णया, संखावत्ता, वंसीपत्ता। .
कुम्मुण्णया णं जोणी उत्तम पुरिस माऊणं। कुम्मुण्णयाए णं जोणीए उत्तम पुरिसा गब्भे वक्कमंति, तंजहा - अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा।
संखावत्ता णं जोणी इत्थी रयणस्स, संखावत्ताए जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, विउक्कमति चयंति उवचयंति णो चेव णं विष्फजंति।
वंसीपत्ता णं जोणी पिहुजणस्स, वंसीपत्ताए णं जोणीए पिहुजणे गब्भे वक्कमंति ॥३५२॥
कठिन शब्दार्थ - कुम्मुण्णया - कूर्मोन्नता, उत्तम पुरिस माऊणं - उत्तम पुरुषों की माताओं के, पिहुजणस्स - पृथक्जनों की।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई है? - .
उत्तर - हे गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - १. कूर्मोन्नता, २. शंखावर्ता और ३. वंशीपत्रा।
कूर्मोन्नता योनि उत्तम पुरुषों की माताओं के होती है। कूर्मोन्नता योनि में उत्तम पुरुष गर्भ में उत्पन्न होते हैं। जैसे - अरहन्त (तीर्थंकर), चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव।
शंखावर्ता योनि स्त्रीरत्न की होती है। शंखावर्ता योनि में बहुत से जीव और पुद्गल आते हैं,
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