Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२८६
प्रज्ञापना सूत्र
अचरम द्रव्यों से भी चरमान्त प्रदेश असंख्यात गुणा हो जाते हैं ५ उनसे अलोक के अचरमांत प्रदेश अनन्त गुणा ६. उनसे अलोक के चरमांत अचरमांत प्रदेश विशेषाधिक होते हैं।
लोगालोगस्स णं भंते! अचरिमस्स य, चरिमाण य, चरिमंतपएसाण य, अचरिमंतपसाण य, दव्वट्टयाए, पएसट्टयाए दव्वट्टपएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे लोगालोगस्स दव्वट्टयाए एगमेगे अचरमे, लोगस्स चरिमाइं असंखिज्ज गुणाई, अलोगस्स चरिमाइं विसेसाहियाई, लोगस्स य अलोगस्स य अचरिमं च, चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, पएसट्टयाए सव्वत्थोवा लोगस्स चरिमंतपएसा, अलोगस्स चरिमंतपएसा विसेसाहिया, लोगस्स अचरिमंतपएसा असंखिज्ज गुणा, अलोगस्स अचरिमंतपएसा अणंतगुणा, लोगस्स य अलोगस्स य चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया । दव्वट्ठपएसट्टयाए सव्वत्थोवे लोगालोगस्स दव्वट्टयाए एगमेगे अचरिमे, लोगस्स चरिमाइं असंखिज्ज गुणाई, अलोगस्स चरिमाई विसेसाहियाई, लोगस्स य अलोगस्स य अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, लोगस्स चरिमंतपएसा असंखिज्ज गुणा, अलोगस्स य चरिमंतपंएसा विसेसाहिया, लोगस्स अचरिमंतपएसा असंखिज्ज गुणा, अलोगस्स अचरिमंतपएसा अणंतगुणा, लोगस्स य अलोगस्स य चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया, सव्वदव्वा विसेसाहिया, सव्वपएसा अणंत गुणा, सव्वपज्जवा अणंत गुणा ॥ ३५७ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! लोकालोक के अचरम, बहुवचनान्त चरमों, चरमान्त प्रदेशों और अचरमान्त प्रदेशों में द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से, द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किनसे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं, अथवा विशेषाधिक हैं ?
उत्तर हे गौतम! द्रव्य की अपेक्षा से सबसे कम लोकालोक का एक-एक अचरम है। उसकी अपेक्षा लोक के बहुवचनान्त चरम असंख्यात गुणा हैं, अलोक के बहुवचनान्त चरम विशेषाधिक हैं, लोक और अलोक का अचरम और बहुवचनान्त चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे थोड़े लोक के चरमान्त प्रदेश हैं, अलोक के चरमान्त प्रदेश विशेषाधिक हैं, उनसे लोक के अचरमान्त प्रदेश असंख्यात गुणा हैं, उनसे अलोक के अचरमान्त प्रदेश अनन्त गुणा हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org