Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दसवां चरम पद - चरम अचरम पदों का अल्पबहुत्व
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चरम अचरम पदों का अल्पबहुत्व इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो अध्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाई असंखिज गुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहिया, पएसट्टयाए सव्वत्थोवा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए चरिमंतपएसा, अचरिमंतपएसा असंखिज्ज गुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएंसा य दो वि विसेसाहिया, दव्वद्रुपएसट्ठयाए सव्वत्थोवे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखिज्ज गुणाई, अचरिमं चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाणि, पएसट्टयाए चरिमंतपएसा असंखिज्ज गुणा, अचरिमंतपएसा असंखिज गुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया। एवं जाव अहेसत्तमाए, सोहम्मस्स जाव लोगस्स एवं चेव॥ ३५५ ॥ ___भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अचरम और वहुवचनान्त चरम, चरमान्तप्रदेशों तथा अचरमान्त प्रदेशों में द्रव्यों की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य-प्रदेश दोनों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं अथवा विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! द्रव्य की अपेक्षा से इस रत्नप्रभा पृथ्वी का एक अचरम सबसे कम है। उसकी अपेक्षा बहुवचनान्त चरम असंख्यात गुणा हैं। अचरम और बहुवचनान्त चरम ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से इस रत्नप्रभा पृथ्वी के चरमान्त प्रदेश सबसे कम हैं। उनकी अपेक्षा अचरमान्त प्रदेश असंख्यात गुणा हैं। चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम इस रत्नप्रभा पृथ्वी का एक अचरम है। उसकी अपेक्षा असंख्यात गुणा बहुवचनान्त चरम हैं। अचरम और बहुवचनान्त चरम, ये दोनों ही विशेषाधिक हैं। उनसे प्रदेशों की अपेक्षा चरमान्त प्रदेश असंख्यात गुणा हैं, उनसे अचरमान्त प्रदेश असंख्यात गुणा हैं। चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश ये दोनों विशेषाधिक हैं।
इसी प्रकार शर्कराप्रभा पृथ्वी से लेकर नीचे की सातवीं तमस्तमः पृथ्वी तक तथा सौधर्म से लेकर यावत् लोक तक पूर्वोक्त प्रकार से अचरम, बहुवचनान्त चरमों, चरमान्तप्रदेशों तथा अचरमान्तप्रदेशों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा करनी चाहिए।
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