Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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कुम्भ राजा की अग्रमहिषी प्रभावती की कुक्षि से मल्ली भगवती का जन्म हुआ था और उसके बाद छोटे सहोदर भाई मल्लदिन्न का जन्म हुआ था। उत्तराध्ययन सूत्र के बाईसवें अध्ययन में बाईसवें तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमि का समुद्रविजयजी की अग्रमहिषी शिवादेवी की कुक्षि से जन्म हुआ था। उसके बाद रथनेमि (रहनेमि ), सत्यनेमि, दृढ़नेमि इन तीन सहोदर भाईयों का जन्म हुआ था । (सत्यनेमि और दृढ़नेमि का वर्णन अन्तगड सूत्र में है ) ।
कृष्ण वासुदेव का वर्णन श्री अन्तगड़ सूत्र में है । राजा वसुदेव की महारानी देवकी के उदरसे अनीकसेन आदि छह बड़े सहोदर और छोटे सहोदर गजसुकुमाल का जन्म हुआ था। कृष्ण वासुदेव का जन्म भी देवकी रानी के सातवें पुत्र के रूप में हुआ था । आचाराङ्ग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध के पन्द्रहवें अध्ययन में बतलाया गया है कि चौबीसवें तीर्थङ्कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का जन्म क्षत्रियकुण्डपुर नगर के महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला माता की कुक्षि से हुआ था। उसी त्रिशला की कुक्षि से भाई नन्दीवर्धन और वहिन सुदर्शना का भी जन्म हुआ था जो कि महावीर स्वामी के बड़े सहोदर भाई और बड़ी बहिन थी । इन सब उद्धरणों से यह निष्कर्ष निकलता है कि तीर्थङ्कर आदि उत्तम पुरुषों का जन्म तो कूर्मोन्नता योनि से ही होता है। उनके अतिरिक्त सामान्य पुरुष भी कूर्मोन्नता योनि से उत्पन्न हो सकते हैं ।
कलिकाल सर्वज्ञ पद से सुशोभित हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित " त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र" में सट शलाका ( श्लाघनीय) पुरुषों का जीवन चरित्र है । जिसमें २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव और ९ प्रतिवासुदेव के जीवन का वर्णन है । वासुदेव का जन्म होने से पहले प्रतिवासुदेव का जन्म निश्चित रूप से होता ही है। वह अपने प्रबल पुरुषार्थ द्वारा भरत क्षेत्र आदि के तीन खण्डों को जीत कर एवं उनके राजाओं को अपने वशीभूत करके त्रिखण्डाधिपति (तीन खण्ड का स्वामी) कहलाता है इसलिए यह भी सम्भावना की जा सकती है कि वासुदेव के जन्म के बाद एवं उनके बड़ा होने के बाद जब युद्ध का प्रसङ्ग आने से पहले वह वासुदेव शब्द से भी सम्बोधित किया जा सकता होगा ऐसा प्रतीत होता है क्योंकि जब तक दूसरा व्यक्ति सामने खड़ा न हो तब तक उसके पीछे 'प्रति' शब्द नहीं लगता है जैसे कि वादी के सामने जब तक दूसरा प्रतिद्वन्दी खड़ा नहीं होता है तब तक वह वादी ही कहलाता है। सामने प्रतिपक्षी खड़ा होने पर वह प्रतिवादी कहलाता है। इसी प्रकार वासुदेव के सामने खड़ा होने पर ही वह प्रतिवासुदेव कहलाता होगा जैसे कि वादी प्रतिवादी और पक्ष- प्रतिपक्ष, मल्ल (पहलवान) प्रतिमल्ल कहलाता है । इसी प्रकार वासुदेव और प्रतिवासुदेव के लिए भी समझना चाहिए। यह सब बात युक्ति और तर्क से संगत होने के कारण संभावना रूप से लिखी गयी है और इसी कारण के समवायाङ्ग सूत्र के ५४ वें समवाय में ५४ उत्तम पुरुष गिनाये गये हैं यथा २४ तीर्थङ्कर, १२ चक्रवर्ती ९ बलदेव
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