Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दसमं चरिमपयं
दसवां चरम पद उक्खेओ (उत्क्षेप-उत्थानिका) - पण्णवणा सूत्र के इस दसवें पद का नाम "चरिमपयं" है। जिसका संस्कृत रूपान्तर "चरम पद" होता है। जगत् में जीव और अजीव दो पदार्थ हैं। उनमें से अजीवों में भी रत्नप्रभा आदि आठ पृथ्वियाँ, देवलोक, लोक, अलोक तथा परमाणु पुद्गल, स्कन्ध, संस्थान आदि हैं। इनमें कोई चरम (अन्तिम) होता है और कोई अचरम (मध्य) होता है। इसलिए किसको एक वचनान्त चरम या अचरम कहना चाहिए और किसे बहुवचनान्त चरम या अचरम कहना चाहिए अथवा किसे चरमान्त प्रदेश या अचरमान्त प्रदेश कहना चाहिए। यह विचार इस दसवें पद में किया गया है। टीकाकार ने चरम और अचरम आदि शब्दों का रहस्य खोल कर समझाया है कि ये . शब्द सापेक्ष हैं अर्थात् दूसरे की अपेक्षा रखते हैं।
(नोट - संस्कृत भाषा में एकवचन, द्विवचन और बहुवचन ऐसे तीन वचन प्रत्येक शब्द के होते हैं। परन्तु अर्धमागधी भाषा में सिर्फ एकवचन और बहुवचन ऐसे दो ही वचन होते हैं इसलिये इन दो पदों को लेकर ही यहाँ विचार किया गया है।)
यहाँ सर्वप्रथम रत्नप्रभा आदि आठ पृथ्वियाँ तथा सौधर्म आदि देवलोकों का एवं लोक, अलोक आदि के चरम और अचरम इन दो पदों के छह विकल्प उठाकर चर्चा की गयी है। इसके उत्तर में छह ही विकल्पों का निषेध किया गया है। क्योंकि जब रत्नप्रभा आदि को अखण्ड एक मानकर विचार किया जाय तो उक्त छह विकल्पों में से वह एक विकल्प रूप भी नहीं है किन्तु जब उसकी विवक्षा असंख्यात प्रदेशी एवं असंख्यात प्रदेशावगाढ की जाय और उसे अनेक अवयवों में विभक्त माना जाय तो वे नियम से अचरम और अनेक चरम रूप तथा चरमान्त प्रदेश और अचरमान्त प्रदेश रूप हैं। इस उत्तर का भी रहस्य टीकाकार ने खोला है। - इसके पश्चात् चरम आदि पूर्वोक्त छह पदों के अल्प बहुत्व का विचार किया गया है। उसमें द्रव्यार्थिक नय, प्रदेशार्थिक नय एवं द्रव्य प्रदेशार्थिक नय इन तीनों नयों से विचारणा की गयी है।
- इसके पश्चात् चरम, अचरम एवं अवक्तव्य इन तीनों पदों के एक वचनान्त और बहुवचनान्त इन छह पदों पर से असंयोगी, द्विक संयोगी और त्रिक संयोगी इनके छब्बीस भंग (विकल्प) बनाकर एक परमाणु पुद्गल और द्विप्रदेशी से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक की अपेक्षा से गहन चर्चा की गयी है कि इन छब्बीस भङ्गों में से किसमें कितने भङ्ग पाये जाते हैं और क्यों पाये जाते हैं?
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