Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! वाणव्यंतर देवों की न तो शीत योनि होती है और न ही उष्ण योनि होती है। किन्तु शीतोष्ण योनि होती है। इसी प्रकार ज्योतिषी देवों की और वैमानिक देवों की योनि के विषय में समझना चाहिए।
विवेचन - सभी देवों के १३ दण्डक, संज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी मनुष्य में एक शीतोष्ण योनि होती है। तेजस्काय की उष्ण योनि और शेष चारों स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय और असंज्ञी मनुष्य में तीनों योनियाँ पाई जाती हैं ।
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सामान्य रूप से नैरयिक जीवों के दो योनियाँ बताई गई हैं। शीत योनि और उष्ण योनि । किस नरक पृथ्वी में कौनसी योनि होती है यह बात टीका में इस प्रकार बतलाई गई है, यथा पहली रत्नप्रभा, दूसरी शर्कराप्रभा और तीसरी बालुकाप्रभा में नैरयिकों का जो उपपात क्षेत्र हैं वे सब शीत स्पर्श परिणाम से परिणत है। इन उपपात क्षेत्रों के सिवाय इन तीन पृथ्वियों में शेष स्थान उष्ण स्पर्श परिणाम से परिणत है । इस कारण से शीत योनि वाले नैरयिक उष्ण वेदना का वेदन करते हैं। चौथी पङ्क प्रभा पृथ्वी में अधिकांश उपपात क्षेत्र शीत स्पर्श परिणाम से परिणत होते हैं। थोड़े से उपपात क्षेत्र ऐसे हैं जो उष्ण स्पर्श परिणाम से परिणत हैं। जिन प्रस्तटों (पाथड़ों) और नरकावासों में शीत स्पर्श वाले उपपात क्षेत्र है उनमें उपपात क्षेत्रों के अतिरिक्त शेष समस्त स्थान उष्ण स्पर्श वाले होते हैं तथा जिन प्रस्तटों और नरकावासों में उष्ण स्पर्श परिणाम वाले उपपात क्षेत्र हैं उनमें उन उपपात क्षेत्रों के सिवाय दूसरे सब स्थान शीत स्पर्श परिणाम वाले होते हैं इस कारण से वहाँ के बहुत से शीतयोनिक नैरयिक उष्ण वेदना का वेदन करते हैं जबकि थोड़े से उष्ण योनिक नैरयिक शीत वेदना का वेदन करते हैं। पांचवीं धूम प्रभा पृथ्वी में बहुत से उपपात क्षेत्र उष्ण स्पर्श परिणाम से परिणत होते हैं और थोड़े से उपपात क्षेत्र शीत स्पर्श परिणाम से परिणत होते हैं जिन प्रस्तटों और जिन नरकावासों में उष्ण स्पर्श परिणाम वाले उपपात क्षेत्र हैं उनमें उन उपपात क्षेत्रों के सिवाय दूसरे सब स्थान शीत परिणाम वाले होते है । इस कारण से वहाँ के बहुत से उष्णयोनिक नैरयिक शीत वेदना का वेदन करते हैं और थोड़े से शीत योनिक नैरयिक उष्ण वेदना का वेदन करते हैं। छठी तमः प्रभा और सातवीं तमः तमः प्रभा पृथ्वी में सभी उपपात क्षेत्र उष्ण स्पर्श परिणाम वाले हैं उनके सिवाय दूसरे सब स्थान वहाँ शीत स्पर्श वाले होते हैं। इस कारण से वहाँ दोनों नरकों के नैरयिक उष्णयोनिक हैं अतः वे सब शीत वेदना का वेदन करते हैं।
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नैरयिक जीवों में उत्पन्न होते समय सर्व प्रथम जैसे पुद्गल ग्रहण करते हैं वैसी ही उनकी योनि होती है। जैसे शीत योनि वाले नैरयिक प्रथम समय में शीत पुद्गल ही ग्रहण करते हैं । अत: उनकी शीत योनि होती है। शीत योनि वाले नैरयिकों के उत्पत्ति स्थान को छोड़ कर शेष सभी क्षेत्र उष्ण वातावरण वाला होता है । अतः उत्पत्ति स्थान में क्षेत्र वेदना नहीं समझना चाहिये। इसी प्रकार उष्ण
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