Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२६६
प्रज्ञापना सूत्र.
उत्तर - हे गौतम ! असुरकुमार देवों की न तो शीत योनि होती है और न ही उष्ण योनि होती है किन्तु शीतोष्ण योनि होती है। इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमारों तक समझना चाहिये। अर्थात् दस ही प्रकार के भवनवासियों के न तो शीत योनि होती है न ही उष्ण योनि होती है किन्तु शीतोष्ण योनि होती है।
पुढवीकाइया णं भंते! किं सीया जोणी, उसिणा जोणी, सीओसिणा जोणी?
गोयमा! सीया वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीओसिणा वि जोणी। एवं आउ वाउ वणस्सइ बेइंदिय तेइंदिय चउरिदियाणं वि पत्तेयं भाणियव्वं । तेउकाइयाणं णो सीया, उसिणा, णो सीओसिणा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की क्या शीत योनि होती है, उष्ण योनि होती है या शीतोष्ण योनि होती है? __उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिकों की शीत योनि भी होती है, उष्ण योनि भी होती है और शीतोष्ण योनि भी होती हैं। ___ इसी तरह अप्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय जीवों की योनि के विषय में कहना चाहिए। अर्थात् इनके शीत, उष्ण और शीतोष्ण योनि होती है। तेजस्कायिक जीवों की शीत योनि नहीं होती है, उष्ण योनि होती है, शीतोष्ण योनि नहीं होती है अर्थात् तेजस्कायिक जीवों में सिर्फ उष्ण योनि होती है किन्तु शीत योनि और शीतोष्ण योनि नहीं होती है।
पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं भंते! किं सीया जोणी, उसिणा जोणी, सीओसिणा जोणी?
गोयमा! सीया वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीओसिणा वि जोणी। सम्मुच्छिम पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं वि एवं चेव।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों की क्या शीत योनि होती हैं, उष्ण योनि होती है या शीतोष्ण योनि होती है?
उत्तर - हे गौतम! तिर्यंच पंचेन्द्रियों की योनि शीत भी होती है उष्ण भी होती है और शीतोष्ण भी होती है। सम्मूछिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की योनि के विषय में भी इसी तरह कहना चाहिए। अर्थात् इन के तीनों प्रकार की योनि होती है।
गब्भवक्कंतिय पंचिंदिय-तिरिक्ख जोणियाणं भंते! किं सीया जोणी, उसिणा जोणी, सीओसिणा जोणी?
गोयमा! णो सीया जोणी, णो उसिणा जोणी, सीओसिणा जोणी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org