Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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नववां योनि पद - नैरयिक आदि में शीत आदि योनियाँ
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उत्तर - जीवों के उत्पत्ति स्थान को योनि कहते हैं।
उत्पत्तिं स्थान रूप योनि प्रत्येक जीव निकाय के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के भेद से अनेक प्रकार की होती है जो इस प्रकार है - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वायुकाय-प्रत्येक की ७-७ लाख, प्रत्येक वनस्पतिकाय की दस लाख, साधारण वनस्पतिकाय की चौदह लाख, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय प्रत्येक की दो-दो लाख, देव नैरयिक और तिर्यंच पंचेन्द्रिय की चार-चार लाख और मनुष्यों की चौदह लाख योनि होती हैं। सभी मिल कर चौरासी लाख जीव योनि होती हैं। यद्यपि व्यक्ति भेद की अपेक्षा से अनंत जीव होने से अनन्त योनि होती है किन्तु समान वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शों वाली बहुत योनियाँ होने पर भी सामान्य रूप से जाति रूप एक योनि गिनी जाती हैं। अतः ८४ लाख जीव योनि ही होती है, कहा है -
सम वण्णाइसमेया बहवो वि हु जोणिभेअलक्खा उ। सामण्णा घेप्पंति हु एक्कजोणिए गहणेणं॥
- समान वर्णादि सहित, बहुत लाख योनि के भेद होते हैं फिर भी सामान्य तौर पर एक योनि के नाम से ग्रहण किये जाते हैं।
योनि तीन प्रकार की कही गयी है - १.शीत योनि - शीत स्पर्श के परिणाम वाली योनि २. उष्ण योनि - उष्ण स्पर्श के परिणाम वाली योनि और ३. शीतोष्ण योनि - शीत और उष्ण उभय स्पर्श के परिणाम वाली योनि।
नैरयिक आदि में शीत आदि योनियाँ णेरइयाणं भंते! किं सीया जोणी, उसिणा जोपी, सीओसिणा जोणी? गोयमा! सीया वि जोणी, उसिणा वि जोणी, णो सीओसिणा जोणी।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिकों की क्या शीतयोनि होती है ? उष्णयोनि होती है या शीतोष्ण योनि होती हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों की शीतयोनि भी होती है, उष्णयोनि भी होती है किन्तु शीतोष्ण योनि नहीं होती है।
असुरकुमाराणं भंते! किं सीया जोणी, उसिणा जोणी, सीओसिणा जोणी?
गोयमा! णो सीया जोणी, णो उसिणा जोणी, सीओसिणा जोणी, एवं जाव थणियकुमाराणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार देवों की क्या शीत योनि होती है या उष्ण योनि होती है या शीतोष्ण योनि होती है ?
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