Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
नोट:- स्मृति में रखने के लिए थोकड़ा वालों ने चार संज्ञाओं के प्रथम अक्षर संकेत रूप से लिये हैं। यथा - आहार संज्ञा के लिए "आ", भय संज्ञा के लिए 'भ', मैथुन संज्ञा के लिए "मा" और परिग्रह संज्ञा के लिए "पी" अक्षर लिया गया है। नैरयिक जीवों का संकेत "मा, आ, पी" है। इसका भाव यह है कि नैरयिक जीवों में सब से थोड़े मैथुन संज्ञा के उपयोग वाले होते हैं। उनसे आहार संज्ञा के उपयोग वाले संख्यात गुणा होते हैं। उनसे परिग्रह संज्ञा के उपयोग वाले संख्यात गुणा होते हैं और उनसे भी भय संज्ञा के उपयोग वाले संख्यात गुणा होते हैं। संज्ञा चार हैं और यहाँ पहले के तीन अक्षर लिये गये हैं इसका कारण यह है कि जिस गति में जो सर्वाधिक संज्ञा के उपयोग वाले हैं वह अक्षर अन्त में स्वयं समझ लेना चाहिए। संक्षेप करने के लिए चौथा अक्षर छोड़ दिया गया है। गति की अपेक्षा अक्षर इस प्रकार हैं -
नरक में "मा, आ, पी"। तिर्यंच गति में "पी, मा, भ"। मनुष्य गति में "भ, आ, पी"। देवगति में "आ, भ, मा"।
यह अगरचन्द भैरुदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था सेठियों का मोहल्ला बीकानेर से प्रकाशित पण्णवणा सूत्र के थोकड़ों का प्रथम भाग के आधार से लिखा गया है।
॥पण्णवणाए भगवईए अट्ठमं सण्णापयं समत्तं॥ ॥ प्रज्ञापना भगवती सूत्र का आठवाँ पद समाप्त॥
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