Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सातवाँ उच्छ्वास पद - वैमानिक देवों में श्वासोच्छ्वास विरहकाल
ज्योतिषी देवों में श्वासोच्छ्वास विरहकाल
जोइसिया णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा?
गोयमा! जहणेणं मुहुत्तपुहुत्तस्स, उक्कोसेण वि मुहुत्तपुहुत्तस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा ॥ ३३२ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! ज्योतिषी देव कितने काल से श्वासोच्छ्वास लेते हैं और छोड़ते हैं ? उत्तर - हे गौतम! ज्योतिषी देव जघन्य मुहूर्त पृथक्त्व से और उत्कृष्ट भी मुहूर्त पृथक्त्व से श्वासोच्छ्वास लेते हैं और छोड़ते हैं।
विवेचन - ज्योतिषी देव जघन्य और उत्कृष्ट मुहूर्त्त पृथक्त्व से श्वासोच्छ्वास लेते हैं और छोड़ते हैं । किन्तु यहाँ पर ऐसा समझना चाहिए कि जघन्य दो, तीन मुहूर्त्त और उत्कृष्ट आठ, नौ मुहूर्त्त आदि समझना चाहिए। तात्पर्य यह है कि जघन्य से उत्कृष्ट की संख्या अधिक समझनी चाहिए ।
वैमानिक देवों में श्वासोच्छ्वास विरहकाल
वेमाणिया णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा?
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गोयमा! जहण्णेणं मुहुत्तपुहुत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए पक्खाणं आणमंति वा, . पाणमंति वा, ऊससंति वा, णीससंति वा ॥ ३३३ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वैमानिक देव कितने काल से श्वासोच्छ्वास लेते हैं और छोड़ते हैं ? उत्तर - हे गौतम! वैमानिक देव जघन्य मुहूर्त्त पृथक्त्व और उत्कृष्ट तेतीस पक्ष से श्वासोच्छ्वास लेते हैं और छोड़ते हैं ।
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विवेचन - वेमाणिया ..... तेत्तीसाए पक्खाणं- 'अनुत्तर विमान के देव १६ -
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हैं फिर १६ पक्ष छोड़ते है। ऐसा नहीं समझना । टीका में कहा है - 'इह देवेषु यस्स यावन्ति सागरोपमाणि स्थितिस्तस्य तावत् पक्ष प्रमाण उच्छ्वास निःश्वास किया विरह कालः ' 'जिन देवों की जितनी सागरोपम की स्थिति है - उन देवों के उच्छ्वास निःश्वास क्रिया का विरह काल भी उतने ही पक्षों का होता है । अतः पूज्य म. सा. का फरमाना है कि पहले टीका पाठ देखा नहीं था अतः ऐसा अर्थ करते थे परन्तु अब 'टीका' के आशय से इस प्रकार से समझना जैसे देवों में मनोभक्षी आहार ग्रहण की प्रक्रिया अन्तर्मुहूर्त्त तक चलती है । अन्तर्मुहूर्त्त तक आभोग आहार ग्रहण
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पक्ष श्वास लेते
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