Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि बेइन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्याय हैं? .
उत्तर - हे गौतम! एक बेइन्द्रिय जीव दूसरे बेइन्द्रिय से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, किन्तु अवगाहना की दृष्टि से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित अधिक है। यदि हीन होता है तो या तो असंख्यातभाग हीन होता है, या संख्यातभाग हीन होता है, अथवा संख्यातगुण हीन या असंख्यातगुण हीन होता है। अगर अधिक होता है तो असंख्यातभाग अधिक या संख्यातभाग अधिक अथवा संख्यातगुण या असंख्यातगुण अधिक होता है। स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित हीनाधिक होता है तथा वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श के तथा आभिंनिंबोधिक, ज्ञान, श्रुतज्ञान, मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। - इसी प्रकार तेइन्द्रिय जीवों के पर्यायों की अनन्तता के विषय में समझना चाहिए। इसी तरह चउरिन्द्रिय जीवों के पर्यायों की अनन्तता होती है। विशेष यह है कि उनमें चक्षुदर्शन भी होता है। अतएव इनके पर्यायों की अपेक्षा से भी चउरिन्द्रिय की अनन्तता समझ लेनी चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों के पर्यायों का कथन नैरयिकों के समान कहना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय एवं तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्यायों का निरूपण किया गया है। * विकलेन्द्रिय एवं तिर्यंचपंचेन्द्रिय में द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा परस्पर समानता होने पर भी अवगाहना की दृष्टि से पूर्ववत् चतुःस्थानपतित, स्थिति की दृष्टि से त्रिस्थानपतित एवं वर्णादि के तथा मतिज्ञानादि के पर्यायों की दृष्टि से षट्स्थानपतित न्यूनाधिकता होती है, इस कारण इनके पर्यायों की अनन्तता स्पष्ट है।
मनुष्यों के पर्याय मणुस्साणं भंते! केवइया पजवा पणत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम ! मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-'मणुस्साणं अणंता पजवा पण्णत्ता'?
गोयमा! मणुस्से मणुसस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, वण्ण-गंध-रस-फास-आभिणिबोहियणाणसुयणाण-ओहिणाण-मणपज्जवणाण पजवेहिं छट्ठाणवडिए, केवलणाण पज्जवेहिं तुल्ले, तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिए, केवलदसण पजवेहिं तुल्ले।
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