Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
विशेष बात यह है कि वे स्वस्थान में स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित हैं। यह जीव के पर्यायों की प्ररूपणा समाप्त हुई।
विवेचन - वाणव्यन्तर देवों के, ज्योतिषी देवों के और वैमानिक देवों के पर्यायों की प्ररूपणा - पूर्वोक्त सूत्रानुसार तीनों प्रकार के देवों के पर्यायों का कथन अतिदेशपूर्वक किया गया है। इस प्रकार जीव पर्याय संबंधी समस्त पृच्छाएं २१३८ बताई गई है।
उपर्युक्त पाठ में वैमानिकों के लिए असुरकुमारों का अतिदेश (भलावण) दिया गया है। इससे वैमानिक देवों के उत्कृष्ट अवधिज्ञान में स्थिति त्रिस्थान पतित होती है। (असुरकुमारों की भलावण देकर वैमानिकों में सर्वत्र स्थिति त्रिस्थान पतित कहना चाहिये ऐसा मूल पाठ में 'णवरं' शब्द कह कर बताया गया है।) उत्कृष्ट अवधिज्ञान क्षेत्र की अपेक्षा तो अनुत्तर विमान के देवों को ही संभव है। जबकि उनमें परस्पर स्थिति में द्विस्थान पतित फर्क ही होता है। मूलपाठ में त्रिस्थान पतित फर्क बताया गया है इसका आशय आगमज्ञ महापुरुष इस प्रकार समझाते हैं - "यहाँ पर उत्कृष्ट अवधिज्ञान क्षेत्र व काल की अपेक्षा नहीं समझ कर द्रव्य व पर्यायों की अपेक्षा समझने से आगम पाठ की संगति हो सकती है। इस प्रकार का उत्कृष्ट अवधिज्ञान सातवें देवलोक के देवों के भी संभव हो सकने से त्रिस्थान पतित स्थिति के आगम पाठ में कोई भी बाधा नहीं आती है।" अतः इस प्रकार समझना चाहिये।
अजीव पर्याय अजीव पजवा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - रूवि अजीव पजवा य अरूवि अजीव पजवा य ॥२६६॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अजीव पर्याय कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! अजीव पर्याय दो प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - १. रूपी अजीव के पर्याय और २. अरूपी अजीव के पर्याय।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अजीव पर्याय के मुख्य दो भेदों का निरूपण किया गया है।
रूपी अजीव पर्याय और अरूपी अजीव पर्याय की परिभाषा - रूपी - जिसमें रूप (वर्ण) गन्ध, रस और स्पर्श हो, उसे रूपी कहते हैं। रूप आदि युक्त अजीव को रूपी अजीव कहते हैं। रूपी अजीव पुद्गल ही होता है, इसलिए रूपी अजीव के पर्याय का अर्थ हुआ-पुद्गल के पर्याय। अरूपी का अर्थ है - जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का अभाव हो, जो अमूर्त हो। अत: अरूपी अजीवपर्याय का अर्थ हुआ-अमूर्त अजीव के पर्याय।
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