Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पांचवां विशेष पद - परमाणु पुद्गल के पर्याय
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अणंता अणंत पएसिया खंधा, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'ते णं णो संखिजा, णो असंखिज्जा, अणंता'॥२६८॥
प्रश्न - हे भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं कि वे पूर्वोक्त चतुर्विध रूपी अजीवपर्याय संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, किन्तु अनन्त हैं ?
उत्तर - हे गौतम! परमाणु-पुद्गल अनन्त हैं, द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, यावत् दश प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, असंख्यात प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं और अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं। हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वे न संख्यात हैं, न ही असंख्यात हैं, किन्तु अनन्त हैं।
प्रमाणु पुद्गल के पर्याय परमाणु पोग्गलाणं भंते! केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! परमाणुपोग्गलाणं अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! परमाणु पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? . उत्तर - हे गौतम! परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-'परमाणुपुग्गलाणं अणंता पजवा पण्णत्ता?'
गोयमा! परमाणु पुग्गले परमाणु पुग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठिईए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए। जइ हीणे असंखिजइ भागहीणे वा, संखिजइ भागहीणे वा, संखिजइ गुणहीणे वा, असंखिजइ गुणहीणे वा। अह अब्भहिए असंखिजइ भाग अब्भहिए वा, संखिजइ भाग अब्भहिए वा, संखिज गुण अब्भहिए वा, असंखिज गुण अब्भहिए वा। काल वण्ण पजवेहिं सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए। जइ हीणे अणंत भागहीणे वा, असंखिजइ भागहीणे वा, संखिजइ भागहीणे वा, संखिज गुणहीणे वा, असंखिज्ज गुणहीणे वा, अणंत गुण हीणे वा। अह अब्भहिए अणंत भाग अब्भहिए वा असंखिजइ भाग अब्भहिए वा, संखिज्जइ भाग अब्भहिए वा, संखिज गुण अब्भहिए वा, असंखिज्ज गुण अब्भहिए वा, अणंत गुण अभिहिए वा। एवं अवसेस वण्ण गंध रस फास पज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। फासाणं सीय उसिण णिद्धलुक्खेहिं छट्ठाणवडिए, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'परमाणुपोग्गलाणं अणंता पजवा पण्णत्ता।'
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