Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२०८
प्रज्ञापना सूत्र
मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या स्त्रियों से उत्पन्न होते हैं या पुरुषों से उत्पन्न होते हैं या नपुंसकों से उत्पन्न होते हैं? - उत्तर - हे गौतम! स्त्रियों से भी उत्पन्न होते हैं, पुरुषों से भी उत्पन्न होते हैं और नपुंसकों से भी उत्पन्न होते हैं।
विवेचन - संख्यात वर्ष की आयु वाले पुरुष मनुष्य, स्त्री और नपुंसक मनुष्य ये तीनों वेद वाले पहली नरक से लेकर छठी नरक तक उत्पन्न होते हैं। अब सातवीं नरक के अन्दर जो विशेषता है, वह अगले सत्र में बतलाई जा रही है।
अहेसत्तमा पुढवी णेरड्या णं भंते! कओहिंतो उववजति? गोयमा! एवं चेव, णवरं इत्थीहिंतो पडिसेहो कायव्वो। भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन्! सातवीं अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! इनकी उत्पत्ति संबंधी प्ररूपणा छठी तमःप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के समान समझनी चाहिये। विशेषता यह है कि स्त्रियों से उत्पन्न होने का निषेध करना चाहिये। अर्थात् सातवीं नरक में तिर्यंच स्त्री और मनुष्य स्त्री (स्त्री वेदी) उत्पन्न नहीं होती हैं।
"अस्सण्णी खलु पढमं दोच्चं पि सिरीसवा तइय पक्खी। सीहा जंति चउत्थिं उरगा पुण पंचमिं पुढविं। छद्धिं च इत्थियाओ मच्छा मणुया य सत्तमिं पुढविं। एसो परमोववाओ बोद्धव्वो णरगपुढवीणं॥३०९॥"
भावार्थ - असंज्ञी प्रथम नरक पर्यन्त, सरीसृप-भुजपरिसर्प दूसरी नरक तक, पक्षी तीसरी नरक तक, सिंह चौथी नरक तक, उर:परिसर्प पांचवीं नरक तक, स्त्रियाँ छठी नरक तक और मत्स्य तथा मनुष्य सातवीं नरक तक उत्पन्न होते हैं। यह नरक पृथ्वियों का उत्कृष्ट उपपात समझना चाहिये।
विवेचन - सातवीं नरक में मनुष्य स्त्री (मनुष्यणी) और जलचर स्त्री (मछली) भी नहीं जाती है। उपर्युक्त गाथा में आये हुए 'अस्सण्णी' शब्द से असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय के पांचों भेद समझना 'सिरीसवा' शब्द से भुजपरिसर्प, 'पक्खी ' शब्द से खेचर 'सीहा' शब्द से चतुष्पद स्थलचर, 'उरगा' शब्द से उरपरिसर्प, 'इत्थियाओ' शब्द से सोलह ही भेदों की स्त्रियाँ तथा उपलक्षण से पुरुष और नपुंसक अर्थात् तीनों वेदी, 'मच्छा मणुया' शब्द से जलचर और कर्म भूमि मनुष्य पुरुष और नपुंसक वेदी समझना चाहिये। दूसरी नरक से सातवीं नरक तक आने वाले सभी जीव संज्ञी पंचेन्द्रिय ही होते हैं। असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का उपपात तो प्रथम नरक में ही होता है।
असुरकुमारा णं भंते! कओहिंतो उववजंति?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org