Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छ । व्युत्क्रlin 1.
सक्करप्पभा पुढवी णेरइएहिंतो उववजंति, वालुयप्पभा पुढवी णेरइएहिंतो उववजंति जाव, अहेसत्तमा पुढवी जेरइएहिंतो उववजंति?
गोयमा! रयणप्पभा पुढवी णेरइएहितो वि उववजंति जाव तमापुढबी णेरइएहितो वि उववजंति, णो अहेसत्तमापुढवी जेरइएहितो उववजंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि मनुष्य गति के जीव नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! वे रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों से यावत् तमःप्रभा पृथ्वी तक के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं किन्तु अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते।
विवेचन - पहली नरक से लेकर छठी नरक तक के जीव मरकर मनुष्यों में उत्पन्न हो सकते हैं किन्तु सातवीं नरक से मरकर मनुष्यों में उत्पन्न नहीं हो सकते हैं। वे तो मरकर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों में ही उत्पन्न होते हैं।
जइ तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति किं एगिंदिय तिरिक्ख जोणिएहितो उववजंति-एवं जेहिंतो पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं उववाओ भणिओ तेहिंतो मणुस्साणं वि णिरवसेसो भाणियव्वो, णवरं अहेसत्तम पुढवी णेरइएहितो, तेउकाइएहितो वाउकाएहिंतो ण उववजनि। सव्वदेवेहिंतो य उववाओ कायव्वो जाव कप्पाईयवेमाणियसव्वट्ठसिद्ध देवेहिंतो वि उववजावेयव्वा॥३१६॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि मनुष्य गति के जीव तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय आदि तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
... उत्तर - हे गौतम ! जिन-जिन से पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों का उपपात कहा गया है उन-उन से मनुष्यों का भी सारा उपपात कहना चाहिये। विशेष यह है कि मनुष्य अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों से, तेजस्कायिकों से और वायुकायिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। सभी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना चाहिए। यावत् कल्पातीत वैमानिक देवों-सर्वार्थ सिद्ध विमान तक के देवों से भी उपपात समझना चाहिये।
वाणमंतरदेवा णं भंते! कओहिंतो उववजति किं णेरइएहिंतो उववजंति, तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, मणुस्सेहिंतो उववजंति, देवेहिंतो उववजंति? गोयमा! जेहिंतो असुरकुमारा उववजति तेहिंतो वाणमंतरा उववजावेयव्वा॥३१७॥
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