Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
गोयमा! बायर पुढवीकाइएसु उववजंति, णो सुहुमपुढवीकाइएसु उववजंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि असुरकुमार जाति के देव पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं या बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न नहीं होते हैं।
जइ बायरपुढवीकाइएसु उववजंति किं पजत्तग बायर पुढवीकाइएसु उववजंति, अपजत्तग बायर पुढवीकाइएसु उववज्जंति?
गोयमा! पज्जत्तएसु उववजंति णो अपजत्तएसु उववज्जति। एवं आउकाइएसु वि, वणस्सइसु वि भाणियव्वं। पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियेसु मणुस्से य जहा णेरइयाणं उववट्टणा सम्मुच्छिमवजा तहा भाणियव्वा। एवं जाव थणियकुमारा॥३२१॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि असुरकुमार जाति के देव बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तकों में उत्पन्न होते हैं किन्तु अपर्याप्तकों में उत्पन्न नहीं होते हैं। इसी प्रकार अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों में उत्पत्ति के विषय में भी कहना चाहिए।
पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में उत्पत्ति के विषय में उसी प्रकार कहना चाहिए, जिस प्रकार सम्मूर्छिम को छोड़कर नैरयिकों की उद्वर्तना कही गयी है।
इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक की उद्वर्तना समझ लेनी चाहिए।
पुढवीकाइया णं भंते! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववजंति? किं णेरइएसु उववजति तिरिक्ख जोणिएसु उववजंति, मणुस्सेसु उववजंति, देवेसु उववजंति?
गोयमा! णो णेरइएसु उववजंति, तिरिक्खजोणियेसु मणुस्सेसु उववजंति, णो देवेसु उववजंति। एवं जहा एएसिं चेव उववाओ तहा उव्वट्टणा वि देववज्जा भाणियव्वा। एवं आउ-वणस्सइ-बेइंदिय-तेइंदिय-चरिंदिया वि। एवं तेउ० वाउ०, णवरं मणुस्सवज्जेसु उववजंति।
- भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीव अनन्तर उद्वर्तन करके कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में, तिर्यंच योनिकों में, मनुष्यों में, देवों में उत्पन्न होते हैं ?
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